डोनाल्ड ट्रंप का भारत के प्रति दोहरा रवैया: दोस्ती या धोखा?
डोनाल्ड ट्रंप का भारत के प्रति रवैया हाल ही में चर्चा का विषय बना हुआ है। वे एक ओर भारत को अपना मित्र बता रहे हैं, जबकि दूसरी ओर, यूरोपीय संघ से भारत और चीन पर आयात शुल्क बढ़ाने का आग्रह कर रहे हैं। क्या ट्रंप की बातें और उनके कार्यों में बड़ा अंतर है? जानें इस लेख में ट्रंप की असली मंशा और उनके व्यापारिक दावों के पीछे का सच।
Sep 10, 2025, 13:54 IST
ट्रंप का दोहरा चेहरा
आपने शायद सुना होगा कि 'मुंह में राम, बगल में छुरी' का मतलब है कि कोई व्यक्ति बाहरी रूप से अच्छा और मित्रवत दिखता है, लेकिन उसके अंदर कपट होता है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हालिया व्यवहार भारत के प्रति कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है। एक ओर, वे भारत को अपना मित्र बता रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत के लिए उत्सुकता दिखा रहे हैं। सोशल मीडिया पर वे व्यापारिक सौदों के नए दावे कर रहे हैं, जिससे ऐसा लगता है कि उनका दृष्टिकोण भारत के प्रति बदल गया है। लेकिन कुछ रिपोर्ट्स ऐसी हैं जो यह दर्शाती हैं कि ट्रंप की बातों और उनके कार्यों में बड़ा अंतर है।
यूरोपीय संघ पर दबाव
रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप ने यूरोपीय संघ से भारत और चीन पर आयात शुल्क 100 प्रतिशत तक बढ़ाने का आग्रह किया है, ताकि रूस पर यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने का दबाव डाला जा सके। यह अनुरोध वाशिंगटन में एक उच्च-स्तरीय बैठक के दौरान किया गया था। फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार, इस बैठक का मुख्य उद्देश्य मॉस्को पर आर्थिक दबाव बढ़ाना था। ट्रंप ने कहा कि एक एकीकृत ट्रांसअटलांटिक दृष्टिकोण ही आगे बढ़ने का सही तरीका है।
अमेरिका की तैयारियां
सूत्रों के अनुसार, अमेरिका यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए किसी भी शुल्क का सामना करने के लिए तैयार है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि वे इस योजना को तुरंत लागू करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते यूरोपीय साझेदार भी इसी तरह की प्रतिबद्धता दिखाएँ। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि इस रणनीति से भारत और चीन के खिलाफ अमेरिकी व्यापार उपायों में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप टैरिफ को रूसी तेल बिक्री को लक्षित करने का सबसे प्रभावी तरीका मानते हैं, खासकर जब चीन और भारत मास्को से रियायती ऊर्जा खरीदने की कोशिश कर रहे हैं।
व्हाइट हाउस की हताशा
दंडात्मक व्यापार कार्रवाई का दबाव व्हाइट हाउस के अंदर बढ़ती हताशा को दर्शाता है। अधिकारियों ने बताया कि प्रशासन को शांति समझौते के लिए सीमित विकल्प दिखाई दे रहे हैं, खासकर जब रूस यूक्रेन के शहरों पर हवाई हमले जारी रखे हुए है। ट्रंप का तर्क है कि नाटकीय टैरिफ लगाना और उन्हें तब तक बनाए रखना जब तक बीजिंग मास्को से तेल खरीदना बंद नहीं कर देता, सबसे प्रभावी दबाव बिंदु है, क्योंकि रूस के पास वैकल्पिक खरीदार कम हैं।