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तुर्किये और पाकिस्तान का बढ़ता सैन्य सहयोग: भारत के लिए नई चुनौतियाँ

तुर्किये और पाकिस्तान के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग ने भारत की सुरक्षा रणनीति को एक नई चुनौती दी है। तुर्किये का झुकाव दक्षिण एशिया की भू-राजनीति की ओर, और पाकिस्तान के साथ तकनीकी साझेदारी, भारत के लिए गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। इस लेख में जानें कि भारत को इस स्थिति का सामना करने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए और कैसे यह सहयोग क्षेत्रीय संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
 

तुर्किये का पाकिस्तान के प्रति समर्थन

पाकिस्तान का समर्थन करना तुर्किये की पुरानी राजनीतिक प्रवृत्ति है। हालांकि, भारत ने इसे लंबे समय तक क्षेत्रीय समीकरणों में गंभीर खतरे के रूप में नहीं लिया। तुर्किये को एक दूरस्थ NATO देश के रूप में देखा जाता था, जिसकी रुचि मुख्यतः पश्चिम एशिया और इस्लामी दुनिया में नेतृत्व तक सीमित थी। लेकिन राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन के नेतृत्व में, तुर्किये का झुकाव अब सीधे दक्षिण एशिया की भू-राजनीति की ओर बढ़ रहा है, जो भारत की सुरक्षा रणनीति के लिए एक नया प्रश्न खड़ा कर रहा है.


ऑपरेशन सिंदूर का महत्व

‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह स्पष्ट कर दिया था कि भारत शायद कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को नजरअंदाज कर रहा था। पाकिस्तान द्वारा भारत की पश्चिमी सीमा पर किए गए ड्रोन हमलों में 300 से अधिक ड्रोन को मार गिराया गया, जिनमें कई तुर्किये निर्मित Songar मॉडल शामिल थे। इनकी क्षमता और घातकता किसी भी संघर्ष को असमान बना सकती है। यह तथ्य कि तुर्किये की तकनीक अब पाकिस्तान के सैन्य ढांचे का हिस्सा बन चुकी है, दोनों देशों के बीच की साझेदारी की गहराई को दर्शाता है.


सैन्य सहयोग का विस्तार

तुर्किये और पाकिस्तान का गठजोड़ केवल सैन्य सहयोग तक सीमित नहीं है; यह एक वैचारिक मेल भी है। दोनों देशों की कट्टर सुन्नी पहचान और मुस्लिम विश्व में नेतृत्व की महत्वाकांक्षा साझा है। पाकिस्तान को तुर्किये से तकनीकी सहायता और अंतरराष्ट्रीय वैधता मिलती है, जबकि तुर्किये को पाकिस्तानी सैन्य मानव-बल और दक्षिण एशिया में प्रवेश का मंच मिलता है.


भारत की प्रतिक्रिया

भारत ने तुर्किये की इस सक्रियता को अनुत्तरित नहीं छोड़ा है। भारत–ग्रीस, भारत–साइप्रस, और भारत–आर्मीनिया के समीकरण आज पहले से कहीं अधिक मजबूत हैं, जो तुर्किये के रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। इसके अलावा, इज़रायल, यूएई, सऊदी अरब और मिस्र जैसे देशों के साथ भारत की बढ़ती निकटता तुर्किये के क्षेत्रीय प्रभाव को सीमित करती है.


भारत को क्या करना चाहिए?

भारत को तकनीकी निर्यात नियंत्रण को कड़ा करना होगा ताकि तुर्किये के माध्यम से कोई भारतीय तकनीक पाकिस्तान तक न पहुँच सके। इसके साथ ही, काउंटर-ड्रोन और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं को तेजी से विकसित करना आवश्यक है। क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के साथ सामरिक संवाद को भी मजबूत करना होगा.