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तुर्की में एर्दोआन का नया दमनचक्र: क्या गुलेन आंदोलन फिर से बन रहा है खतरा?

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोआन ने गुलेन आंदोलन से जुड़े अधिकारियों के खिलाफ एक नई कार्रवाई की है, जिसमें सेना और पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। 2016 के असफल तख्तापलट के बाद से यह दमनचक्र और भी तेज हो गया है। जानें इस स्थिति के पीछे की वजहें और एर्दोआन की सत्ता पर मंडराते खतरे के बारे में। क्या तुर्की में फिर से राजनीतिक उथल-पुथल की आशंका है? पढ़ें पूरी रिपोर्ट।
 

तुर्की में दमनचक्र की नई लहर

हेग में नाटो समिट के दौरान, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोआन जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ हाथ मिला रहे थे, तब उनके चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन उनकी आंखों में एक डर भी झलक रहा था। यह वही डर था जिसने उन्हें 2016 में सत्ता से बेदखल होने से बचाया था। अब, उसी डर के साए में तुर्की में एक बार फिर से बड़ा दमनचक्र शुरू किया गया है।


सुरक्षा बलों पर कड़ी कार्रवाई

तुर्की की सरकारी समाचार एजेंसी 'अनादोलु' के अनुसार, राष्ट्रपति एर्दोआन ने हाल ही में सेना और पुलिस में कठोर कार्रवाई की है। 'गुलेन आंदोलन' से कथित रूप से जुड़े 182 अधिकारियों को हिरासत में लिया गया है। इस्तांबुल, इज़मिर सहित 43 प्रांतों में एक साथ छापेमारी की गई। 176 संदिग्धों के खिलाफ वॉरंट जारी किए गए थे, जिनमें से 163 को गिरफ्तार किया जा चुका है।


गिरफ्तारियों की सूची में उच्च रैंक के अधिकारी

गिरफ्तार किए गए लोगों में सेना के कर्नल, लेफ्टिनेंट कर्नल, मेजर और कैप्टन जैसे वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। एक अलग ऑपरेशन में 21 अन्य को पकड़ा गया है, जिनमें 13 मौजूदा और 6 पूर्व पुलिस अधिकारी शामिल हैं। इन सभी पर आरोप है कि वे 'गुलेन मूवमेंट' के गुप्त नेटवर्क से जुड़े थे और सार्वजनिक टेलीफोन लाइनों के माध्यम से संपर्क में रहते थे।


गुलेन आंदोलन: एक समय का समाज सेवा, अब देशद्रोह?

'हिज़मत' नाम से शुरू हुआ गुलेन आंदोलन कभी शिक्षा और समाज सेवा के लिए जाना जाता था। लेकिन 2016 में तुर्की में हुए असफल तख्तापलट के बाद, राष्ट्रपति एर्दोआन ने इसे 'आतंकी संगठन' घोषित कर दिया। आंदोलन के संस्थापक फेतुल्लाह गुलेन अमेरिका में निर्वासन में रहते थे और 2024 में उनका निधन हो चुका है। हालांकि अमेरिका और यूरोपीय संघ आज भी इस आंदोलन को आतंकवादी संगठन नहीं मानते, लेकिन तुर्की में इसे देशद्रोह से जोड़ा जा चुका है।


क्या एर्दोआन की सत्ता पर खतरा मंडरा रहा है?

2016 के बाद से अब तक 7 लाख से अधिक लोगों की जांच की जा चुकी है। 13,000 से अधिक लोग जेल में हैं और 24,000 से ज्यादा सैन्यकर्मी बर्खास्त किए जा चुके हैं। आलोचकों का कहना है कि एर्दोआन इस आंदोलन के नाम पर हर विरोधी को कुचलने में लगे हैं। गुलेन की मौत के बाद उम्मीद थी कि एर्दोआन थोड़े नरम होंगे, लेकिन सख्ती और बढ़ गई है। तुर्की की सड़कों पर सन्नाटा है, लेकिन सत्ता के गलियारों में एर्दोआन को तख्तापलट का खतरा अब भी महसूस हो रहा है।