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नीतीश कुमार की राजनीतिक वापसी: स्वास्थ्य संकट से चुनावी सफलता तक

नीतीश कुमार ने हाल ही में मुख्यमंत्री पद पर वापसी की है, जबकि उनकी सेहत को लेकर पहले कई चिंताएं थीं। चुनाव प्रचार के दौरान उनकी सक्रियता ने सभी को चौंका दिया। जानिए कैसे उन्होंने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की उम्मीदों को ध्वस्त किया और अपनी पार्टी को मजबूती दी। इस लेख में उनकी यात्रा, स्वास्थ्य संकट और चुनावी सफलता के बारे में विस्तार से बताया गया है।
 

नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री पद पर लौटना

नीतीश कुमार ने एक बार फिर मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया है। तीन महीने पहले उनकी स्वास्थ्य स्थिति को लेकर चिंता जताई जा रही थी, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा था कि वे चुनाव प्रचार में सक्रिय नहीं रह पाएंगे। पिछले दो वर्षों में उनकी सेहत को लेकर कई तरह की चर्चाएं हुईं, जिनमें कुछ वीडियो भी शामिल थे। कई बार उन्हें लोगों के नाम याद नहीं आते थे या अजीब व्यवहार करते हुए देखा गया। इसी कारण उनके जनता दरबार को भी बंद करना पड़ा। एक बार तो उन्होंने गृह मंत्री को बार-बार फोन करने के लिए कहा, जबकि वे स्वयं गृह मंत्री थे। इन घटनाओं ने उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए थे। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आया, उनकी सेहत में सुधार हुआ और उन्होंने सक्रियता से प्रचार करना शुरू किया।


राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की उम्मीदें

नीतीश कुमार की स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उनके प्रतिद्वंद्वियों को उम्मीदें जगी थीं। प्रशांत किशोर ने बार-बार कहा कि नीतीश को अपने मंत्रियों के नाम याद नहीं रहते, जिससे वे उनकी राजनीतिक जगह को हथियाने की कोशिश कर रहे थे। तेजस्वी यादव को लगा कि वे ओबीसी राजनीति के एकमात्र वारिस बन सकते हैं। भाजपा को भी विश्वास था कि नीतीश की पार्टी और उनकी राजनीतिक विरासत पर कब्जा किया जा सकता है। नीतीश की पार्टी के नेता भी अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश में थे। लेकिन नीतीश ने सभी की उम्मीदों को ध्वस्त कर दिया।


सीट बंटवारे में नीतीश का तेवर

नीतीश ने सीट बंटवारे के बाद अपनी स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने मीडिया में चल रही गलत सूचनाओं को खारिज किया। खबरें थीं कि उनकी खराब सेहत का लाभ उठाकर भाजपा और लोजपा को जदयू की कई जीती हुई सीटें दे दी गई थीं, लेकिन नीतीश ने सभी सीटें वापस हासिल कीं। चक्रवाती तूफान मोंथा के कारण बिहार में तीन दिन बारिश हुई, जबकि तेजस्वी यादव जैसे बड़े नेता पटना में बैठे रहे। इस दौरान नीतीश ने सड़क मार्ग से सैकड़ों किलोमीटर यात्रा की और जनसभाएं कीं। इससे चुनाव में उनकी छवि और सहानुभूति बढ़ी, जिसका लाभ उनकी पार्टी और गठबंधन को मिला।


चुनाव प्रचार में नीतीश की मजबूती

जितने लोगों ने उनका मजाक उड़ाया या आलोचना की, वे सभी अब चुप हो गए हैं। चुनाव प्रचार के दौरान उनकी भूलने की बीमारी भी जैसे ठीक हो गई। सरकार गठन के बाद, उन्होंने एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी के पांव छूने के लिए झुकने का प्रयास किया, लेकिन प्रचार के दौरान उनकी स्थिति मजबूत रही।