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नीतीश कुमार की सरकार: चुनौतियाँ और संभावनाएँ

नीतीश कुमार की नई सरकार को कई आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। चुनावी वादों को पूरा करने के लिए राजस्व बढ़ाने की आवश्यकता है, जबकि भाजपा का बढ़ता नियंत्रण भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। जानें कि सरकार के सामने क्या-क्या चुनौतियाँ हैं और भविष्य में क्या संभावनाएँ बन सकती हैं।
 

राजनीति में अनिश्चितता और नीतीश कुमार का स्थायित्व

राजनीति को अक्सर अनिश्चितताओं का खेल माना जाता है, लेकिन नीतीश कुमार ने इसे इतना पूर्वानुमानित बना दिया है कि अब आम लोग भी यह कहने लगे हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री वही होंगे। मजाक में कहा जाता है कि चाहे किसी के साथ गठबंधन करें, लेकिन सरकार नीतीश ही बनाएंगे। हालांकि, विधानसभा में इस बार स्थिति कुछ अलग है।


चुनाव परिणामों में एनडीए के विधायकों की संख्या को छोड़कर, कुछ भी अप्रत्याशित नहीं था। चुनाव परिणाम और सरकार का गठन उसी दिशा में हुआ, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। यह नीतीश कुमार के लिए लगातार पांचवीं बार मिली जनादेश है, इसलिए नई सरकार को कोई हनीमून पीरियड नहीं मिलेगा। इसका मतलब है कि सरकार को अपने वादों को पूरा करने के लिए तुरंत काम करना होगा।


राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ

वर्तमान में सरकार के सामने कोई राजनीतिक चुनौती नहीं है, लेकिन भविष्य में भारतीय जनता पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री बनाने के प्रयास के समय चुनौती आ सकती है। हालांकि, ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव तक ऐसा नहीं होगा। प्रशासनिक चुनौती भी नहीं है, क्योंकि नौकरशाही वही है जो पिछले 20 वर्षों से नीतीश कुमार के साथ काम कर रही है।


इस बार भाजपा और जनता दल यू के बीच बेहतर तालमेल देखने को मिला है। अब यह देखना होगा कि शासन चलाने में दोनों का सहयोग बना रहता है या नहीं।


भाजपा का बढ़ता नियंत्रण

इस बार भाजपा सरकार पर पहले से ज्यादा नियंत्रण रखने का प्रयास कर सकती है। इसके पीछे तीन कारण हैं: नीतीश कुमार की सेहत में गिरावट, भाजपा की अधिक सीटें, और बिहार में विकास के लिए केंद्र से अधिक आवंटन की संभावना।


सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्व की है। चुनाव से पहले किए गए वादों को पूरा करने के लिए बड़े राजस्व की आवश्यकता होगी। पहले नीतीश का विपक्ष लालू प्रसाद या तेजस्वी यादव होते थे, लेकिन अब प्रशांत किशोर के रूप में एक सजग विपक्ष मौजूद है।


आर्थिक चुनौतियाँ और भविष्य की योजनाएँ

सरकार ने महिलाओं के खातों में पैसे डालने, नौकरियों का वादा, और उद्योग में निवेश का आश्वासन दिया है। लेकिन सवाल यह है कि राजस्व कैसे बढ़ेगा? क्या केंद्र के अनुदान और कर्ज पर निर्भर रहकर इतने वादे किए गए हैं? बिहार पर पहले से ही बहुत कर्ज है।


शराबबंदी से राजस्व का नुकसान हो रहा है, और प्रशांत किशोर ने इसे खत्म करने का वादा किया था। यह नीतीश कुमार की विरासत है, जिसे बनाए रखना होगा।


सरकार के सामने मुख्य रूप से आर्थिक चुनौती है, लेकिन जब इतना बड़ा बहुमत मिलता है, तो अनदेखे राजनीतिक संकट भी खड़े हो सकते हैं।