नेपाल में राजनीतिक संकट: अमेरिका और चीन के बीच भू-राजनीतिक टकराव का नया केंद्र?
नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का उभार
हाल ही में नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता ने वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। प्रारंभ में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ प्रदर्शन हुए, जो बाद में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में बदल गए। इन प्रदर्शनों में हिंसा भड़क गई, जिसमें लगभग 20 लोगों की जान गई, और अंततः प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। सूत्रों के अनुसार, ओली अब दुबई भागने की योजना बना रहे हैं। इस घटनाक्रम ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जैसे क्या केवल ऐप्स पर प्रतिबंध इतनी हिंसा का कारण बन सकता है? या नेपाल अब अमेरिका और चीन के बीच भू-राजनीतिक टकराव का नया केंद्र बन गया है?
पड़ोसी देशों में राजनीतिक उथल-पुथल
पिछले कुछ वर्षों में भारत के पड़ोसी देशों में राजनीतिक और आर्थिक उथल-पुथल देखी गई है। उदाहरण के लिए, 2022 में श्रीलंका का आर्थिक संकट, पाकिस्तान में इमरान खान की सत्ता से बेदखली, और 2024 में बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार का पतन। इन घटनाओं में एक समान पैटर्न देखा गया है, जहां घरेलू मुद्दों पर शुरू हुए प्रदर्शन भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों में बदल गए और अंततः सरकारों का पतन हुआ। नेपाल की हालिया घटनाएं भी इसी दिशा में बढ़ती दिख रही हैं।
नेपाल में हिंसा का आरंभ
नेपाल में अशांति की शुरुआत सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध से हुई। हालांकि सरकार ने यह प्रतिबंध वापस ले लिया, लेकिन प्रदर्शन जारी रहे। काठमांडू की सड़कों पर 'केपी चोर, देश छोड़' जैसे नारे गूंजने लगे। मंगलवार को प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल, प्रधानमंत्री ओली, और अन्य मंत्रियों के आवासों पर हमला किया, तोड़फोड़ की और आग लगा दी। सत्ताधारी पार्टी के एक नेता के स्वामित्व वाले काठमांडू के प्रसिद्ध हिल्टन होटल को भी भीड़ ने नष्ट कर दिया।
अशांति के कई कारण
नेपाल में अशांति के पीछे कई कारण हैं। 2008 में गणतंत्र बनने के बाद से सत्ता मुख्य रूप से तीन नेताओं केपी शर्मा ओली, माओवादी नेता प्रचंड, और शेर बहादुर देउबा के बीच घूमती रही है। इन नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, जिसने युवाओं में राजनीतिक व्यवस्था के प्रति निराशा पैदा की है। बढ़ती बेरोजगारी और आर्थिक ठहराव ने इस असंतोष को और बढ़ाया।
भू-राजनीतिक टकराव: चीन बनाम अमेरिका
जुलाई 2024 में चौथी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद, केपी शर्मा ओली ने चीन के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया। परंपरागत रूप से नेपाली प्रधानमंत्री अपनी पहली विदेश यात्रा भारत करते हैं, लेकिन ओली ने चीन का रुख किया। इस दौरान उन्होंने चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर सहमति जताई और नेपाल को $41 मिलियन की वित्तीय सहायता मिली। यह कदम चीन की दक्षिण एशिया में प्रभाव बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा माना जाता है।
बांग्लादेश और श्रीलंका से समानताएं
बांग्लादेश में भी घरेलू असंतोष और अंतरराष्ट्रीय दबाव ने शेख हसीना की सरकार को उखाड़ फेंका। हसीना ने आरोप लगाया कि अमेरिका ने उनकी सरकार को हटाने की साजिश रची। नेपाल में हिंसा की टाइमिंग भी संदिग्ध है, खासकर तब जब ओली सितंबर 2025 में भारत यात्रा की तैयारी कर रहे थे।
क्या नेपाल अगला युद्धक्षेत्र है?
नेपाल की मौजूदा स्थिति श्रीलंका और बांग्लादेश की घटनाओं से मिलती-जुलती है। सवाल यह है कि क्या नेपाल अब वैश्विक शक्तियों खासकर अमेरिका और चीन के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का नया अखाड़ा बन चुका है? क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों का प्रभाव इन अशांतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, और नेपाल का भविष्य अनिश्चितता के दौर में प्रवेश कर चुका है।