पवन सिंह की भाजपा में वापसी: बिहार चुनाव में राजग को मिलेगी नई ताकत
बिहार की राजनीति में नया मोड़
- भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह की भाजपा में वापसी
Editorial Aaj Samaaj | राकेश सिंह | बिहार की राजनीति में हमेशा से ही ड्रामा भरा रहता है और अब 2025 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक और बड़ा ट्विस्ट आ गया है। भोजपुरी के सुपरस्टार पवन सिंह, जिन्हें लोग पावर स्टार कहते हैं, भाजपा में वापस लौट आए हैं। पिछले साल 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा से बगावत करके काराकाट सीट से निर्दलीय लड़कर राजग को बड़ा झटका दिया था।
उस वक्त भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया था, लेकिन अब पानी पी-पीकर सब भूल गए लगते हैं। पवन सिंह ने दिल्ली में अमित शाह, जेपी नड्डा और विनोद तावड़े से मुलाकात की, और उपेंद्र कुशवाहा से भी हाथ मिलाया, जिनके खिलाफ वो लड़े थे। भाजपा के नेता कह रहे हैं कि पवन अब राजग के लिए काम करेंगे और ये कदम बिहार चुनाव में भाजपा को कितना पावर देगा, ये देखना दिलचस्प होगा।
पवन सिंह कोई छोटे-मोटे आदमी नहीं हैं। भोजपुरी फिल्मों और गानों से उन्होंने लाखों युवाओं को अपना दीवाना बनाया है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। शाहाबाद रीजन, जो भोजपुर, आरा, रोहतास, कैमूर और बक्सर को कवर करता है, वहां उनकी फैन फॉलोइंग जबरदस्त है।
ये इलाका राजपूत और कुशवाहा वोटर्स का गढ़ है, और पवन खुद राजपूत हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में राजग को यहां सिर्फ आठ सीटें मिली थीं, जबकि महागठबंधन ने 14 पर कब्जा जमाया। 2024 लोकसभा में भी पवन की वजह से राजग को काराकाट, औरंगाबाद और बक्सर जैसी सीटों पर हार मिली। अब उनकी वापसी से राजग को लगता है कि राजपूत वोट संगठित होंगे और कुशवाहा कम्युनिटी भी साथ आएगी, क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा ने उन्हें माफ कर दिया है।
खास तौर पर आरा-शाहपुर इलाके की बात करें तो यहां फायदा साफ दिख रहा है। आरा भोजपुर जिले में है और शाहपुर भी इसी एरिया का हिस्सा। यहां राजपूत वोटर्स की अच्छी-खासी तादाद है और पवन सिंह का नाम चलता है। वो लोकल इश्यूज पर बोलते हैं, स्टेज परफॉर्मेंस से लोगों को जोड़ते हैं। भाजपा के स्थानीय नेता कह रहे हैं कि पवन की वजह से युवा वोटर्स राजग की तरफ शिफ्ट हो सकते हैं।
2024 में पवन ने काराकाट से 1 लाख से ज्यादा वोट लिए थे, भले ही हार गए, लेकिन राजग और महागठबंधन दोनों को चोट पहुंचाई। अब अगर वो भाजपा के टिकट पर आरा या किसी लोकल सीट से लड़ें, तो महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यहां तक कि आरके सिंह जैसे सीनियर भाजपा नेता भी पवन से मिल चुके हैं, जो आरा से सांसद थे। इस बार हार चुके हैं।
अब सवाल ये कि पवन सिंह को इस बार किसने वापस लाया और समझौता कराया? साफ है कि भाजपा की टॉप लीडरशिप ने ये खेल खेला है। अमित शाह और जेपी नड्डा से उनकी मीटिंग्स बताती हैं कि केंद्र से ही ये प्लानिंग हुई। विनोद तावड़े, जो बिहार भाजपा के इंचार्ज हैं, ने खुद कन्फर्म किया कि पवन सिंह भाजपा में थे और रहेंगे। उपेंद्र कुशवाहा से मिलवाकर पुरानी दुश्मनी खत्म कराई गई।
कुशवाहा राष्ट्रीय लोक मोर्चा के चीफ हैं, और राजग के साथी। 2024 में पवन की वजह से कुशवाहा हार गए थे, लेकिन अब भाजपा ने मध्य प्रदेश मॉडल अपनाया है। मतलब वोट्स को बिखरने नहीं देना, सबको साथ जोड़ना। पवन ने खुद कहा कि मैं कभी भाजपा से अलग हुआ ही नहीं। ये सब चुनावी रणनीति का हिस्सा लगता है, जहां स्टार पावर से वोट बटोरने की कोशिश है।
महागठबंधन को इससे नुकसान होगा कि नहीं? महागठबंधन, जो राजद, कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन है, शाहाबाद में मजबूत था क्योंकि राजग के वोट बंट गए थे। लालू यादव ने एमवाई (मुस्लिम-यादव) फॉर्मूला में कुशवाहा जोड़कर कुशवाहा वोटर्स को लुभाया था और 2024 में दो कुशवाहा उम्मीदवार जीते भी। लेकिन अब पवन की वापसी से राजपूत-कुशवाहा कॉम्बो राजग के साथ मजबूत हो सकता है।
तेज प्रताप यादव ने तो अफवाहों पर ही कह दिया कि पवन सिंह भाजपा में जा रहे हैं, लेकिन ये अब हकीकत है। महागठबंधन के लिए ये चिंता की बात है, क्योंकि शाहाबाद-मगध रीजन में 22 सीटें हैं, और यहां हार-जीत से पूरा चुनावी गणित बदल सकता है। अगर पवन कैंपेन करेंगे, तो युवा और भोजपुरी स्पीकिंग वोटर्स राजग की तरफ झुक सकते हैं।
कुल मिलाकर, पवन सिंह की वापसी भाजपा के लिए एक स्मार्ट मूव है। वो सिर्फ एक सिंगर नहीं, बल्कि एक पॉलिटिकल फोर्स हैं। बिहार चुनाव में जाति, क्षेत्र और स्टारडम सब मायने रखते हैं। राजग को लगता है कि इससे चिराग पासवान जैसी महत्वाकांक्षाओं को बैलेंस किया जा सकता है, और नीतीश कुमार की जदयू के साथ मिलकर मजबूत फाइट दी जा सकती है।
लेकिन क्या पवन वाकई पावर देंगे, या फिर कोई नया ड्रामा होगा? चुनाव नवंबर में हैं, तब पता चलेगा। फिलहाल, पवन के फैंस खुश हैं, और महागठबंधन वाले सोच में पड़ गए हैं। बिहार की राजनीति में ऐसे ट्विस्ट्स ही तो मजा देते हैं!