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पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर विवाद गहराया

पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण अभियान की तैयारी के बीच विवाद उत्पन्न हो गया है। चुनाव आयोग ने चार अधिकारियों को निलंबित करने का निर्देश दिया है, जिस पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विरोध जताया है। उन्होंने कहा है कि जब तक चुनाव की घोषणा नहीं होती, तब तक आयोग को आदेश देने का अधिकार नहीं है। इस स्थिति में, ममता बनर्जी की सरकार सहयोग नहीं करेगी, जिससे एसआईआर प्रक्रिया में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी।
 

मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण अभियान

पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान, जिसे एसआईआर कहा जाता है, की शुरुआत अभी तक नहीं हुई है। इस प्रक्रिया की तैयारी चल रही है, लेकिन इससे पहले ही एक विवाद उत्पन्न हो गया है। यह विवाद चुनाव आयोग द्वारा पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को भेजे गए एक निर्देश के कारण है। आयोग ने चार अधिकारियों को निलंबित करने का आदेश दिया है, जिन पर आरोप है कि वे फर्जी मतदाता बनाने में संलिप्त थे। इनमें मतदाता पंजीकरण अधिकारी और सहायक ईआरओ शामिल हैं। आयोग ने इस मामले में शिकायत मिलने के बाद कार्रवाई का निर्देश दिया है।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का विरोध

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस आदेश का विरोध करते हुए कहा है कि वे इन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेंगी। उन्होंने इस मामले में कानूनी पहलुओं को उठाया है, यह कहते हुए कि जब तक राज्य में चुनाव की घोषणा नहीं होती, तब तक चुनाव आयोग को कोई आदेश देने का अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि मतदाता सूची के काम में लगे अधिकारी राज्य सरकार के अधीन हैं और उनके बारे में निर्णय राज्य सरकार ही लेगी। हालांकि, आयोग को इस स्थिति का भान है, इसलिए उसने मुख्य सचिव को निर्देश दिया है। लेकिन ममता बनर्जी इस मुद्दे पर टकराव की स्थिति में हैं और आयोग के आदेश का पालन नहीं करेंगी।


एसआईआर प्रक्रिया में बाधाएं

इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट हो गया है कि पश्चिम बंगाल में एसआईआर की प्रक्रिया बिहार की तरह सरल नहीं होगी। बिहार में एनडीए सरकार ने चुनाव आयोग के साथ सहयोग किया, जबकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार सहयोग नहीं करेगी, बल्कि बाधाएं उत्पन्न करेगी। यह भी संभावना है कि ममता बनर्जी की सरकार और उनकी पार्टी यह सुनिश्चित करेंगी कि उनके समर्थकों के नाम मतदाता सूची से न हटें। यदि इसके लिए नागरिकता प्रमाणित करने वाले दस्तावेज की आवश्यकता पड़ेगी, तो वह भी उपलब्ध कराया जाएगा।