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पाकिस्तान की चाय का कप: एक कूटनीतिक गलती का खामियाजा

पाकिस्तान के लिए एक साधारण चाय का कप अब एक बड़ा कूटनीतिक संकट बन गया है। यह चाय 2021 में काबुल में पी गई थी, जब तालिबान ने सत्ता संभाली थी। इस चाय के बाद पाकिस्तान ने तालिबान के लिए अपनी सीमाएं खोलीं, जिससे हजारों तालिबानी फिर से पाकिस्तान में प्रवेश कर गए। जानिए इस चाय के पीछे की कहानी और इसके गंभीर परिणामों के बारे में।
 

पाकिस्तान का चाय का कप और उसकी कूटनीतिक कीमत

पाकिस्तान के लिए एक साधारण चाय का कप अब तक का सबसे बड़ा कूटनीतिक संकट बन गया है। पाकिस्तान ने चाय पीकर एक ऐसी गलती की है, जिसकी कीमत उसे जीवनभर चुकानी पड़ेगी। खुद पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री ईशाक डार ने संसद में कहा है कि यह चाय का कप देश के लिए बहुत महंगा साबित हो रहा है। यह चाय पाकिस्तान के पूर्व आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज़ हामिद ने 2021 में काबुल में पी थी, जब तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता संभाली थी। सितंबर 2021 की शुरुआत में जनरल फैज़ हामिद चुपचाप काबुल पहुंचे थे, जहां एकमात्र फाइव स्टार होटल, सेरेना, में उन्होंने तालिबान के वरिष्ठ नेताओं के साथ चाय का आनंद लिया।


चाय के दौरान की गई बातें

चाय पीते समय जनरल फैज़ हामिद हंसते हुए नजर आए। संयोगवश, उसी होटल में एक ब्रिटिश महिला पत्रकार भी मौजूद थी, जिसने न केवल उनकी तस्वीरें लीं, बल्कि कुछ सवाल भी पूछे। फैज़ हामिद ने जवाब में कहा कि सब कुछ ठीक है। उन्होंने तालिबान के नेताओं से कहा कि वे उनके दोस्त हैं और अब वे मिलकर भारत को बर्बाद कर देंगे। लेकिन इस चाय ने पाकिस्तान को संकट में डाल दिया है। विदेश मंत्री ईशाक डार ने संसद में बताया कि इसी चाय के बाद पाकिस्तान ने तालिबान के लिए अपने सीमाओं को खोल दिया था, जिससे 35 से 40 हजार तालिबानी जो पहले अफगानिस्तान लौट गए थे, फिर से पाकिस्तान में प्रवेश कर गए।


तालिबान के आतंकियों की वापसी

इशाक डार ने यह भी बताया कि उस समय के प्रधानमंत्री इमरान खान और आईएसआई प्रमुख फैज़ हामिद ने उन तालिबान आतंकियों को भी रिहा कर दिया था, जिन्होंने पाकिस्तान के झंडे जलाए थे। आज वे सभी तालिबान के आतंकवादी पाकिस्तान में वापस आ चुके हैं। कई ने बलूचिस्तान में मोर्चा संभाल लिया है, जबकि कुछ खैबर पख्तूनख्वा को पाकिस्तान से अलग करने की कोशिश कर रहे हैं। उस समय शायद पाकिस्तान को यह नहीं पता था कि भारत भी इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए तैयार था। जबकि फैज़ हामिद ने तालिबान के साथ चाय पी थी, भारत मानवीय सहायता के माध्यम से पूरे अफगानिस्तान से जुड़ चुका था।