पाकिस्तान की राजनीति में हलचल: फजलुर रहमान का बयान और सरकार की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान की राजनीति में मौलाना फजलुर रहमान के हालिया बयान ने सरकार को असहज कर दिया है। उन्होंने अफगानिस्तान में पाक सेना की कार्रवाइयों की तुलना भारत के ऑपरेशन सिंदूर से की, जिससे इस्लामाबाद की दोहरी सोच उजागर हुई। फजलुर रहमान के सवालों ने पाकिस्तान की सैन्य नीति पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं, जबकि सरकार ने उनकी आलोचना को खारिज किया है। जानें इस मुद्दे पर और क्या प्रतिक्रियाएं आई हैं और यह स्थिति पाकिस्तान की राजनीति को कैसे प्रभावित कर सकती है।
Dec 24, 2025, 12:12 IST
पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति में उथल-पुथल
पाकिस्तान की राजनीतिक परिदृश्य में इस समय काफी हलचल मची हुई है। जमीयत उलेमा ए इस्लाम एफ के नेता मौलाना फजलुर रहमान ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान सेना की सीमापार गतिविधियों की तुलना भारत के ऑपरेशन सिंदूर से की है, जिससे इस्लामाबाद की दोहरी नीति उजागर हुई है। फजलुर रहमान के इस बयान ने शहबाज शरीफ सरकार को असहज कर दिया है, और वह इसका प्रतिवाद करने में असमर्थ नजर आ रही है।
फजलुर रहमान ने पाकिस्तानी सेना के प्रमुख असीम मुनीर के नेतृत्व में अफगानिस्तान में की गई कार्रवाइयों पर सवाल उठाते हुए कहा कि इन हमलों में आम नागरिकों की जान गई है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि पाकिस्तान यह दावा करता है कि उसने अफगानिस्तान में अपने दुश्मनों को निशाना बनाया है, तो भारत भी यही तर्क कर सकता है कि उसने बहावलपुर और मुरिदके में उन संगठनों पर हमला किया जो कश्मीर में आतंक फैलाते हैं। ऐसे में आपत्ति किस आधार पर की जा सकती है?
फजलुर रहमान ने स्पष्ट किया कि आज वही आरोप अफगानिस्तान पाकिस्तान पर लगा रहा है, जो पाकिस्तान भारत पर लगाता रहा है। ऐसे में एक साथ दो विपरीत दृष्टिकोण को सही ठहराना न तो नैतिक है और न ही राजनीतिक। यह टिप्पणी भारत की उस सैन्य कार्रवाई के संदर्भ में है, जिसे ऑपरेशन सिंदूर के नाम से जाना जाता है। 7 मई को भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए थे, जिसमें बहावलपुर में जैश ए मोहम्मद और मुरिदके में लश्कर ए तैयबा के ठिकाने शामिल थे। यह कार्रवाई 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का प्रतिशोध थी, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई थी।
फजलुर रहमान के बयान के बाद पाकिस्तान सरकार में बेचैनी साफ नजर आई। रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने उनकी आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि अफगानिस्तान में की गई कार्रवाई आतंकियों के खिलाफ थी, न कि किसी देश के खिलाफ। लेकिन यह स्पष्टीकरण उस मूल प्रश्न का उत्तर नहीं देता, जो फजलुर रहमान ने उठाया है। फजलुर रहमान की पार्टी के नेशनल असेंबली में दस सदस्य हैं।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। तालिबान की काबुल में वापसी के बाद से सीमा पर तनाव बढ़ा है। पाकिस्तान का आरोप है कि अफगान धरती से आतंकियों को संरक्षण मिलता है, जबकि अफगान पक्ष इन आरोपों को सिरे से खारिज करता है। हालिया सीमा झड़पों में अफगान नागरिकों की मौत ने इस टकराव को और भड़काया है। भारत ने भी पाकिस्तान की अफगानिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाइयों की आलोचना की है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने स्पष्ट कहा कि निर्दोष अफगान नागरिकों पर हमले निंदनीय हैं।
फजलुर रहमान का बयान केवल एक राजनीतिक हमला नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान की सामरिक सोच पर एक गंभीर सवाल उठाता है। दशकों से पाकिस्तान सेना यह मानती रही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हर कदम उचित है और उस पर सवाल उठाना देशद्रोह के समान है। लेकिन अब यह सवाल भीतर से उठ रहा है, और वह भी धार्मिक राजनीति के एक पुराने खिलाड़ी द्वारा। सामरिक दृष्टि से इसका पहला असर पाकिस्तान की नैतिक स्थिति पर पड़ता है। जब उसके नेता यह स्वीकार करते हैं कि सीमा पार हमले एक वैध विकल्प हो सकते हैं, तो भारत की कार्रवाइयों को अवैध बताने का उनका नैरेटिव कमजोर पड़ जाता है।
साथ ही, फजलुर रहमान का बयान भारत के उस तर्क को मजबूती देता है कि आतंक और राजनीति को अलग नहीं किया जा सकता। जब पाकिस्तान खुद आतंक के खिलाफ कार्रवाई को सही ठहराता है, तो फिर वही तर्क भारत के लिए गलत कैसे हो सकता है। बहरहाल, आइए देखते हैं कि फजलुर रहमान की किस बात से पाकिस्तान सरकार को आपत्ति हुई है।