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पूर्वोत्तर में भाजपा की राजनीतिक चुनौतियाँ और क्षेत्रीय दलों का उदय

भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाने के बाद पूर्वोत्तर पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। एनडीपीपी ने एनपीएफ के साथ विलय किया है, जिससे भाजपा की स्थिति कमजोर हो रही है। मेघालय में एनपीपी और त्रिपुरा की तपरा मोथा के बीच गठबंधन ने राजनीतिक परिदृश्य को और जटिल बना दिया है। जानें कैसे क्षेत्रीय दल भाजपा और कांग्रेस से दूरी बना रहे हैं और अपनी पहचान को सुरक्षित रखने के लिए प्रयासरत हैं।
 

भाजपा की स्थिति और क्षेत्रीय दलों का प्रभाव

भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र में अपनी सरकार बनाने के बाद पूर्वोत्तर पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। इस क्षेत्र के लिए एनडीए ने एक नया समूह स्थापित किया, जिसकी जिम्मेदारी हिमंत बिस्वा सरमा को सौंपी गई। हालांकि, उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से नेडा की प्रभावशीलता में कमी आई है। पहले भाजपा ने केवल दो राज्यों को छोड़कर सभी जगह अपनी या सहयोगी पार्टियों की सरकारें बना ली थीं, लेकिन अब सरकार और राजनीतिक नियंत्रण उसके हाथ से फिसलता जा रहा है। भाजपा की सहयोगी पार्टियाँ अब अपने-अपने रास्ते पर चलने लगी हैं।


नगालैंड और मेघालय में राजनीतिक बदलाव

हाल ही में नगालैंड में सत्तारूढ़ एनडीपीपी ने एनपीएफ के साथ विलय का निर्णय लिया है। इस नई पार्टी का नाम एनपीएफ रखा गया है और इसके नेता मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो होंगे। 60 सदस्यों की विधानसभा में इस नई पार्टी के पास 34 विधायक हैं, जिससे उसे भाजपा के 12 विधायकों की आवश्यकता नहीं रह गई है। इसके अलावा, मेघालय में सत्तारूढ़ एनपीपी के नेता कोनरेड संगमा ने त्रिपुरा में भाजपा की सहयोगी तपरा मोथा के साथ गठबंधन किया है। दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, संगमा और तपरा मोथा के नेता प्रद्योद देबबर्मन ने इस गठबंधन की घोषणा की। दोनों पार्टियाँ पूर्वोत्तर में साझा राजनीति करने का इरादा रखती हैं।


पूर्वोत्तर की क्षेत्रीय पार्टियों की रणनीति

पूर्वोत्तर की क्षेत्रीय पार्टियाँ, अस्मिता की राजनीति के तहत, कांग्रेस और भाजपा से दूरी बना रही हैं। वे अपने क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षित रखने के लिए प्रयासरत हैं।