फ्रांस में बगावत: क्या सरकार जनता के गुस्से को संभाल पाएगी?
बजट योजना से शुरू हुआ आंदोलन
International News: फ्रांस में हालिया बगावत की शुरुआत एक बजट योजना से हुई, जिसमें प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू ने 44 अरब यूरो की बचत का प्रस्ताव रखा। आम जनता को यह महसूस हुआ कि इस निर्णय का सबसे अधिक प्रभाव गरीब और श्रमिक वर्ग पर पड़ेगा। सोशल मीडिया पर विरोध की आवाजें उठने लगीं और यह आंदोलन 'ब्लॉक एवरीथिंग' के रूप में उभरा। लोगों का मानना था कि यह बजट केवल अमीरों के हित में है। सरकार ने प्रारंभिक विरोध को नजरअंदाज किया, लेकिन यह जल्द ही एक बड़े आंदोलन में बदल गया। प्रदर्शनकारियों ने इसे अपने जीवन पर सीधा हमला बताया।
प्रधानमंत्री का इस्तीफा और जनता का गुस्सा
इस्तीफे से नहीं थमा गुस्सा
जैसे-जैसे विरोध बढ़ा, प्रधानमंत्री बायरू को इस्तीफा देना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने इसे अपनी जीत माना, लेकिन उनका गुस्सा कम नहीं हुआ। भीड़ का कहना था कि यह केवल एक चेहरे का बदलाव है। असली नीतियां वही हैं जो जनता को नुकसान पहुंचा रही हैं। प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट किया कि उनकी लड़ाई केवल एक व्यक्ति से नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था के खिलाफ है। इस्तीफा सरकार के लिए राहत का कदम था, लेकिन यह प्रदर्शनकारियों के लिए हौसला बन गया। सड़कों पर नारे गूंजने लगे और गुस्सा और बढ़ गया।
नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति पर प्रतिक्रिया
मैक्रों ने बदला चेहरा
प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद, राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने नए नेता की घोषणा की। रक्षा मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू को प्रधानमंत्री बनाया गया। लेकिन जनता ने इस निर्णय को तुरंत खारिज कर दिया। लोगों का कहना था कि चेहरे के बदलाव से कुछ नहीं होता, जब तक नीतियों में बदलाव न हो। प्रदर्शनकारियों ने सरकार पर तंज कसा कि यह 'पुरानी बोतल में नई शराब' जैसा है। इस कदम से जनता का विश्वास और भी कम हो गया। नतीजतन, भीड़ ने अब सीधे राष्ट्रपति मैक्रों को निशाना बनाना शुरू कर दिया।
सड़कों पर बढ़ता गुस्सा
सड़कों पर भड़का गुस्सा
नए प्रधानमंत्री की घोषणा के तुरंत बाद, पेरिस की सड़कों पर लोग फिर से उतर आए। जगह-जगह आगजनी, तोड़फोड़ और नारेबाजी शुरू हो गई। कई क्षेत्रों में दुकानों को बंद करना पड़ा। सार्वजनिक परिवहन भी प्रभावित हुआ और लोग घंटों तक परेशान रहे। नकाबपोश युवाओं ने बैरिकेडिंग तोड़ी और पुलिस पर पथराव किया। पूरे शहर में धुआं फैल गया और आम लोग घरों में दुबके रहे। जो आंदोलन सोशल मीडिया से शुरू हुआ था, वह अब सड़कों पर हिंसा का रूप ले चुका था।
पुलिस की कड़ी कार्रवाई
पुलिस की कड़ी कार्रवाई
स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने भारी संख्या में पुलिस तैनात की। 80 हजार से अधिक पुलिसकर्मी सड़कों पर मौजूद थे। बख्तरबंद गाड़ियां और दंगा नियंत्रण दस्ते सक्रिय कर दिए गए। पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया। लेकिन गुस्साई भीड़ बार-बार नए समूह बनाकर सामने आती रही। सरकार ने स्वीकार किया कि यह आंदोलन उनकी सोच से कहीं बड़ा है। आंतरिक मंत्री ने पुलिस की तारीफ की, लेकिन माना कि हालात अब भी तनावपूर्ण हैं।
विपक्ष का हमला
विपक्ष ने तेज किया हमला
इस स्थिति का फायदा विपक्ष ने भी उठाया। उन्होंने राष्ट्रपति मैक्रों पर सीधा हमला किया और कहा कि देश को नए चुनावों की आवश्यकता है। विपक्षी नेताओं ने कहा कि मैक्रों की नीतियां केवल अमीरों के हित में हैं। जनता ने भी यही नारे लगाना शुरू कर दिया। अब यह आंदोलन केवल बजट का विरोध नहीं, बल्कि पूरी सरकार के खिलाफ बगावत बन चुका है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी इसे एक बड़े संकट के रूप में दिखाना शुरू कर दिया है। कई विशेषज्ञों ने कहा कि मैक्रों की साख अब खतरे में पड़ गई है।
फ्रांस एक राजनीतिक मोड़ पर
संकट के मोड़ पर फ्रांस
यह घटनाक्रम दर्शाता है कि फ्रांस अब एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मोड़ पर खड़ा है। जनता का कहना है कि यह लड़ाई केवल पैसों की नहीं, बल्कि सम्मान और न्याय की है। यदि सरकार ने अब भी संवाद शुरू नहीं किया, तो हालात और बिगड़ सकते हैं। पेरिस की जलती सड़कों की तस्वीरें दुनिया भर में फैल रही हैं। लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या लोकतंत्र में जनता की आवाज सुनी जा रही है या नहीं। अब देखना है कि फ्रांस सरकार जनता के गुस्से को कैसे शांत करती है।