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बिहार और केरल में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर राजनीतिक विवाद

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर राष्ट्रीय जनता दल का विरोध समाप्त हो गया है, जबकि केरल में सभी विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, सवाल उठता है कि केरल में दलों को पुनरीक्षण से क्या समस्या है। जानें इस राजनीतिक विवाद के पीछे की वजहें और क्या है विपक्ष की मंशा।
 

बिहार में एसआईआर का समर्थन और केरल में विरोध

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण, जिसे एसआईआर कहा जाता है, के दौरान मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल ने स्पष्ट किया है कि उनका विरोध एसआईआर की प्रक्रिया के खिलाफ था, न कि इसके खिलाफ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आधार को सत्यापन दस्तावेज के रूप में मान्यता देने के बाद, जिन व्यक्तियों के नाम गलत तरीके से हटाए गए थे, उन्हें ऑनलाइन आवेदन करने की अनुमति दी गई। इसके बाद विपक्ष ने इस फैसले का स्वागत करते हुए अपने विरोध को समाप्त कर दिया।


हालांकि, केरल में भाजपा विरोधी सभी दल, जिसमें लेफ्ट मोर्चा और कांग्रेस शामिल हैं, एसआईआर का विरोध कर रहे हैं। हाल ही में केरल विधानसभा में इस मुद्दे पर एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें सभी दलों ने एकमत होकर कहा कि राज्य में एसआईआर नहीं होनी चाहिए। अब सवाल यह उठता है कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण क्यों नहीं होना चाहिए? यदि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में बिहार में एसआईआर हो रहा है और अदालत का आदेश पूरे देश पर लागू होता है, तो केरल में दलों को क्या समस्या है?


सुप्रीम कोर्ट ने आधार को सत्यापन दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया है, जिससे किसी को अतिरिक्त दस्तावेज जुटाने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके अलावा, चुनाव अप्रैल या मई में होने वाले हैं, जिससे समय भी उपलब्ध है। फिर भी, यदि विपक्षी दल एसआईआर का विरोध करते हैं, तो यह उनकी मंशा पर सवाल उठाता है। क्या वे उन लोगों के नाम मतदाता सूची में बनाए रखना चाहते हैं, जिनका निधन हो चुका है, जो स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गए हैं, या जिनके नाम एक से अधिक स्थानों पर हैं?