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बिहार की अस्थावां विधानसभा में राजनीतिक बदलाव की बयार

बिहार के अस्थावां विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। जदयू का गढ़ माने जाने वाले इस क्षेत्र में अब कई दल नए सामाजिक समीकरणों के साथ चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हैं। क्या जनता इस बार किसी नए चेहरे को मौका देगी? आरजेडी के संभावित उम्मीदवार रविरंजन कुमार उर्फ छोटू मुखिया की चर्चा हो रही है, जबकि जदयू के विधायक जितेंद्र कुमार भी मजबूत स्थिति में हैं। जानें इस चुनावी मुकाबले की पूरी कहानी।
 

बिहार की सियासत में नया मोड़

बिहार की राजनीति एक बार फिर से बदलती नजर आ रही है, खासकर नालंदा जिले के अस्थावां विधानसभा क्षेत्र में। जहां पहले जदयू की जीत को सुनिश्चित माना जाता था, वहीं अब कई राजनीतिक दल नए सामाजिक समीकरणों के साथ चुनावी मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं। इस बार आम जनता के बीच यह चर्चा का विषय है कि क्या लंबे समय से चल रही एकतरफा राजनीति को कोई चुनौती दे पाएगा।


अस्थावां, जिसे पहले जदयू का सुरक्षित गढ़ माना जाता था, अब मतदाता नए विकल्पों पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। चुनावी इतिहास से पता चलता है कि इस क्षेत्र में जनता ने कई बार निर्दलीय उम्मीदवारों को भी जीत दिलाई है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या इस बार जनता किसी नए चेहरे को मौका देगी।


आरजेडी नेता तेजस्वी यादव यहां की राजनीतिक स्थिति को बदलने के लिए एक नए जातीय समीकरण पर दांव लगाने की योजना बना सकते हैं। जदयू का कुर्मी वोट बैंक स्थायी माना जाता है, लेकिन राजद इस बार यादव, मुस्लिम और भूमिहार समुदाय के बीच गठजोड़ बनाकर चुनावी गणित को बदलने की कोशिश कर रहा है।


इस बार आरजेडी के संभावित उम्मीदवार के रूप में रविरंजन कुमार उर्फ छोटू मुखिया का नाम चर्चा में है। 28 साल की उम्र में वह क्षेत्र के सबसे युवा मुखिया रह चुके हैं और उनकी जनसंपर्क क्षमता और सोशल मीडिया पर सक्रियता उन्हें एक मजबूत विकल्प बना सकती है।


जदयू के पांच बार के विधायक जितेंद्र कुमार अभी भी मजबूत स्थिति में हैं, लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की बेटी लता सिंह जनसुराज के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं। इससे जदयू के पारंपरिक कुर्मी वोट बैंक में बंटवारा होना तय है।


अस्थावां में मतदाता संख्या 2020 की तुलना में 2024 में बढ़कर 3.03 लाख हो गई है। इसमें अनुसूचित जाति की आबादी 25% से अधिक है और मुस्लिम वोटर लगभग 5% हैं। राजनीतिक समीकरण मुख्य रूप से यादव, कुर्मी, भूमिहार और पासवान वोटरों के इर्द-गिर्द घूमता है। ऐसे में कोई भी बदलाव चुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकता है।