बिहार की राजनीति: नेहरू के हस्तक्षेप से बने पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह
बिहार में पहले चरण का मतदान
डॉ. अवधेश कुमार | आज बिहार में पहले चरण का मतदान हो रहा है। इस अवसर पर बिहार की राजनीतिक स्थिति को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसकी शुरुआत स्वतंत्रता संग्राम से करनी होगी। 1917 में महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत की, जिसमें राजकुमार शुक्ल और रामलाल शाह ने गांधी जी को आमंत्रित किया। गांधी जी के साथ डॉ. राजेंद्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद, आचार्य कृपलानी, और डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह जैसे कई कांग्रेसी नेता शामिल हुए। यह आंदोलन बिहार को राष्ट्रीय राजनीति से जोड़ने का पहला प्रयास था।
बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी का गठन
1920 के दशक में बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी (बीपीसीसी) के गठन की प्रक्रिया शुरू हुई। उस समय कांग्रेस कायस्थों के प्रभाव में थी। 1930 के दशक तक भूमिहारों और राजपूतों का बिहार की राजनीति में उदय हो चुका था। भूमिहार जाति के श्रीकृष्ण सिंह ने मुंगेर में वकालत के बाद राजनीति में कदम रखा। वे बिहार विद्यापीठ के संस्थापक सदस्य थे और 1935 में बीपीसीसी के अध्यक्ष बने।
1937 के प्रांतीय चुनाव
1937 के प्रांतीय चुनावों में कांग्रेस ने बहुमत प्राप्त किया। 20 जुलाई 1937 को श्रीकृष्ण सिन्हा प्रीमियर और अनुग्रह नारायण सिंह डिप्टी प्रीमियर बने। यह दोनों पद आज के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के समकक्ष थे। 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ होने पर दोनों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया। स्वतंत्रता के बाद, 2 अप्रैल 1946 को श्रीकृष्ण सिंह बिहार के पहले मुख्यमंत्री और अनुग्रह नारायण सिंह उपमुख्यमंत्री बने। इस जोड़ी को 'आधुनिक बिहार का वास्तुकार' कहा जाता है।
1952 के चुनावों में विवाद
1952 के बिहार चुनाव के बाद श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह के बीच दरार आ गई। 330 सदस्यों वाली विधानसभा में 239 सीटें जीतकर कांग्रेस सरकार में दोनों मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। पटना के सदाकत आश्रम में विधायक दल की बैठक में राजपूत समुदाय के नेता अनुग्रह नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनाने की वकालत करने लगे। उनका तर्क था कि अनुग्रह प्रशासनिक रूप से कुशल हैं।
नेहरू का हस्तक्षेप
पं. जवाहरलाल नेहरू, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, श्रीकृष्ण सिंह को बिहार का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। नेहरू ने हस्तक्षेप किया और अनुग्रह से व्यक्तिगत रूप से बात की। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि विवाद का समाधान नहीं हुआ, तो केंद्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ेगा। इसके बाद अनुग्रह नारायण ने श्रीकृष्ण सिंह के नाम का प्रस्ताव रखा।
दोस्ती का पुनर्निर्माण
इसके बाद, अनुग्रह नारायण सिंह एक दिन श्रीकृष्ण सिंह के घर पहुंचे, जहां दोनों ने गले मिलकर अपनी पुरानी दोस्ती को फिर से जीवित किया। अनुग्रह ने 17 वर्षों तक उपमुख्यमंत्री के रूप में श्रीकृष्ण का साथ दिया। दोनों ने मिलकर बिहार को नया आकार दिया और कृषि, शिक्षा, और उद्योग पर जोर दिया।
बिहार की राजनीति में जाति का प्रभाव
ऐतिहासिक रूप से, बिहार की प्रारंभिक राजनीति में उच्च जातियों का कांग्रेस और सरकार पर दबदबा रहा। 1952-62 तक विधायकों में 40 प्रतिशत उच्च जाति के थे। 1961 में श्रीकृष्ण सिंह की मृत्यु के बाद ब्राह्मण समाज और कायस्थ समाज के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए संघर्ष चला।
लेखक का विचार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)