बिहार चुनाव में एनडीए की सीट बंटवारे की कहानी और चिराग पासवान की भूमिका
बिहार विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे का नया नैरेटिव
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे की घोषणा के साथ ही यह चर्चा शुरू हो गई है कि भाजपा ने नीतीश कुमार को राजनीतिक रूप से कमजोर करने की योजना बनाई है। विपक्षी गठबंधन की पार्टियों और नेताओं के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भाजपा विरोधी समूहों में खुशी का माहौल है, क्योंकि उन्हें लगता है कि नीतीश का समय अब समाप्त हो गया है। वास्तव में, किसी को यह नहीं पता था कि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को 29 सीटें मिल जाएंगी। उनके साथ बातचीत 22 सीटों से शुरू हुई, जो अंततः 29 तक पहुंच गई। इस दौरान कई घटनाक्रम हुए, जैसे चिराग को मनाने के लिए मंगल पांडेय को दिल्ली बुलाया गया और नित्यानंद राय उनके घर जाकर उनसे मिले। मीडिया में यह खबरें भाजपा की ओर से ही फैलाई गईं। अंततः चिराग पासवान की पार्टी को 29 सीटें मिलीं, जबकि नीतीश कुमार के प्रति सहानुभूति रखने वाले जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को छह-छह सीटें दी गईं।
चिराग पासवान का राजनीतिक सफर और भाजपा की मजबूरी
यह ध्यान देने योग्य है कि चिराग पासवान ने पिछले विधानसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ा था और उन्होंने यह संकल्प लिया था कि नीतीश को मुख्यमंत्री बनने नहीं देंगे। उस समय भी वे भाजपा के सहयोगी थे, लेकिन चुनाव से पहले उनका इस्तेमाल किया गया। भाजपा की सभी ताकत और संसाधनों के बावजूद, चिराग केवल एक सीट जीत सके। उन्होंने कई सीटों पर नीतीश के उम्मीदवारों को हराया, फिर भी जनता दल यू ने 43 सीटें जीतीं, जिससे भाजपा को मजबूरन नीतीश को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। इसके बाद, नीतीश के इशारे पर चिराग की पार्टी में दरार आई और पांच सांसद अलग हो गए। चिराग के चाचा पशुपति पारस को केंद्र में मंत्री बनाया गया। इस प्रकार, दोनों पक्षों के बीच एक गांठ बन गई है, जिसे भाजपा लोकसभा चुनाव के समय खोलने का प्रयास कर सकती है।
चुनाव के बाद चिराग की भूमिका और संभावित परिणाम
चुनाव से पहले चिराग का इस्तेमाल प्रभावी नहीं रहा था। अब यह देखना होगा कि चुनाव के बाद उनकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है। पिछले चुनाव में चिराग का कार्ड काफी प्रभावी साबित हुआ था। पहले चरण के बाद, यदि भाजपा और उसका शीर्ष नेतृत्व नीतीश के प्रति पूरी तरह से समर्पित नहीं होता, तो राजद की जीत सुनिश्चित थी। इस बार यह भी संभव है कि चिराग का दांव उलटा पड़ जाए। यदि नीतीश समर्थकों के बीच भाजपा के विश्वासघात का संदेश फैलता है, तो चुनाव में कठिनाई हो सकती है। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि नीतीश के मतदाता चिराग को वोट नहीं देना चाहते हैं और जीतन राम मांझी के मतदाता भी चिराग से नाराज हैं। यदि कुर्मी और मुसहर का वोट बंटता है, तो मगध और सीमांचल की अधिकांश सीटों पर चिराग के उम्मीदवार हार सकते हैं, जिसका सीधा लाभ महागठबंधन को होगा।