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बिहार चुनाव में भाजपा का रणनीतिक फोकस: घुसपैठिया मुद्दा और मंदिर निर्माण

बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने घुसपैठिया मुद्दे और मंदिर निर्माण को प्रमुखता दी है, जबकि जदयू इसके खिलाफ है। जदयू के नेता चुनाव में ध्रुवीकरण के मुद्दों को उठाने से बचना चाहते हैं। जानें कैसे भाजपा और जदयू की रणनीतियाँ एक-दूसरे से टकरा रही हैं और चुनावी माहौल पर इसका क्या असर पड़ सकता है।
 

भाजपा की चुनावी रणनीति

बिहार में भारतीय जनता पार्टी अपने स्थापित रणनीति से हटने को तैयार नहीं है। विधानसभा चुनाव से पहले, उसने घुसपैठिया मुद्दे को प्रमुखता दी है, साथ ही प्रधानमंत्री मोदी और महिलाओं के मुद्दे के साथ मंदिर निर्माण का भी सहारा लिया है। हाल के दिनों में, राज्य सरकार ने एक के बाद एक मंदिरों के निर्माण का निर्णय लिया है, जिसकी घोषणा भाजपा के नेता और उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार की सभाओं में घुसपैठियों पर निशाना साधते हुए कहा है कि हर एक घुसपैठिए की पहचान कर उसे बाहर निकाला जाएगा।


जदयू की चिंताएँ

हालांकि, भाजपा के इस ऐलान से जनता दल यू संतुष्ट नहीं है। जदयू के नेता चुनाव में किसी भी प्रकार के ध्रुवीकरण वाले मुद्दे को उठाने के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में यह अंतिम चुनाव है, इसलिए इसे उनके हिसाब से लड़ा जाना चाहिए। जदयू का कहना है कि नीतीश ने कभी भी सांप्रदायिक या ध्रुवीकरण वाले मुद्दों पर चुनाव नहीं लड़ा है। वे हमेशा अपने कार्यों के आधार पर जनता के बीच जाते हैं। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा इस बार चाहती है कि नीतीश कुमार के नाम पर जनादेश मांगा जाए। वह नीतीश का चेहरा आगे रखकर उनकी पुण्यता का लाभ उठाना चाहती है, लेकिन बाद में यह भी दिखाना चाहती है कि उसके एजेंडे पर जनादेश मिला है। इसी कारण जदयू के नेता इसका विरोध कर रहे हैं।