बिहार चुनाव में मतदान का नया रिकॉर्ड: क्या प्रशांत किशोर का दावा सही साबित होगा?
बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान का ऐतिहासिक आंकड़ा
यदि प्रशांत किशोर का अनुमान सही निकला, तो अन्य राज्यों में भी नए राजनीतिक उद्यमियों को प्रोत्साहन मिलेगा। इससे वर्तमान राजनीतिक स्थिरता में बदलाव आ सकता है। लेकिन अगर एनडीए जीतता है, तो नकद हस्तांतरण के जरिए वोट “खरीदने” की परंपरा और मजबूत होगी।
बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान ने एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। यहां 66.91 प्रतिशत मतदान होना एक उल्लेखनीय उपलब्धि है, खासकर यह देखते हुए कि महिलाओं का मतदान प्रतिशत 71.6 फीसदी रहा। यह आंकड़ा पुरुषों के मतदान (62.8 प्रतिशत) से लगभग दस प्रतिशत अधिक है। इस असामान्य मतदान पैटर्न ने चुनाव परिणामों को लेकर जिज्ञासा बढ़ा दी है। पहले चरण में 65.56 प्रतिशत मतदान हुआ, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड था, जिससे मतदाताओं के उत्साह के बारे में अटकलें लगाई जाने लगीं। एक कारण यह बताया गया कि विशेष पुनरीक्षण के चलते मतदाता सूची से अनुपस्थित मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं, जिससे केवल वास्तविक मतदाता ही बचे हैं।
इससे मतदान प्रतिशत में वृद्धि होना स्वाभाविक है। दूसरा कारण नई पार्टी जनसुराज को माना गया है। इसके नेता प्रशांत किशोर का कहना है कि नए विकल्प मिलने से मतदाता उत्साहित हैं और वे ‘नई व्यवस्था’ के निर्माण के लिए मतदान कर रहे हैं। महागठबंधन ने इसे एंटी-इन्कंबेंसी की लहर बताया है। हालांकि, दर्जनों एग्जिट पोल्स ने जो संकेत दिए हैं, वे सत्ता पक्ष के समर्थन में लहर की ओर इशारा करते हैं। क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दांव, जिसमें दस हजार रुपये लगभग डेढ़ करोड़ महिलाओं के खातों में भेजने और अन्य नकद हस्तांतरण योजनाओं के तहत सहायता राशि बढ़ाने का शामिल है, सफल होगा?
इन सवालों के जवाब जानने के लिए हमें शुक्रवार तक का इंतजार करना होगा। लेकिन यह निश्चित है कि जो भी सत्य साबित होगा, उसमें दूरगामी महत्व का संदेश छिपा होगा। यदि प्रशांत किशोर का दावा सही होता है, तो यह अन्य राज्यों में भी नए राजनीतिक उद्यमियों को प्रेरित करेगा। इससे वर्तमान राजनीतिक स्थिरता में बदलाव की संभावना बनेगी। लेकिन यदि एनडीए जीतता है, तो नकद हस्तांतरण के जरिए वोट “खरीदने” की परंपरा और मजबूत होगी। इस स्थिति में महागठबंधन में शामिल दल ‘वोट चोरी’ का शोर और तेज करेंगे, जिससे भारतीय चुनाव प्रणाली पर लगातार सवाल उठते रहेंगे, हालांकि इस स्थिति के लिए निर्वाचन आयोग भी समान रूप से जिम्मेदार है।