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बिहार चुनाव से पहले भाजपा की रणनीति: जातीय समीकरण सुधारने की कोशिश

भारतीय जनता पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में जातीय समीकरणों को सुधारने की दिशा में कदम उठाए हैं। पवन सिंह को राजपूत और कुशवाहा समुदायों के बीच की दूरी को कम करने के लिए आगे लाया गया है। इसके अलावा, मगध क्षेत्र में भूमिहार और चंद्रवंशी के बीच की खाई को भी सुलझाने की कोशिश की जा रही है। जानें इस राजनीतिक रणनीति के पीछे की पूरी कहानी और इसके संभावित प्रभाव।
 

भाजपा की चुनावी तैयारी

भारतीय जनता पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में राजनीतिक मुद्दों को सुलझाना शुरू कर दिया है। जातियों के बीच की खाई को प缩ने का प्रयास किया जा रहा है। धर्मेंद्र प्रधान के चुनाव प्रभारी बनने के बाद, एक सप्ताह के भीतर इस दिशा में पहला कदम उठाया गया। भाजपा और एनडीए के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण शाहाबाद क्षेत्र में राजपूत और कुशवाहा समुदायों के बीच की दूरी को कम करने के लिए भोजपुरी फिल्म स्टार पवन सिंह को आगे लाया गया।


भाजपा के प्रदेश संगठन के प्रभारी विनोद तावड़े और बिहार के नेता ऋतुराज सिन्हा ने उपेंद्र कुशवाहा के सरकारी आवास पर पवन सिंह के साथ मुलाकात की। वहां पवन सिंह ने कुशवाहा के पैर छुए और कुशवाहा ने उन्हें गले लगाया। यह ध्यान देने योग्य है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में शाहाबाद और मगध में भाजपा और एनडीए की हार के पीछे पवन सिंह का हाथ था, जब उन्होंने काराकाट सीट पर उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ा था।


इस क्षेत्र में भाजपा के कुछ नेताओं ने भितरघात किया, जिससे राजपूत समुदाय पूरी तरह से पवन सिंह के पक्ष में आ गया। इसके परिणामस्वरूप, कुशवाहा भाजपा के खिलाफ हो गए।


शाहाबाद और मगध में कुल नौ लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से एनडीए ने केवल नवादा और गया में जीत हासिल की। बाकी सात सीटें महागठबंधन के पास गईं। यह समीकरण 2015 में बिगड़ा, जब नीतीश कुमार ने एनडीए छोड़कर राजद के साथ चुनाव लड़ा। इसके बाद से स्थिति में सुधार नहीं हो सका। 2020 में भी एनडीए को केवल 10 सीटें मिलीं। अब पहली बार एनडीए ने इस स्थिति को सुधारने की गंभीर कोशिश की है। यदि राजपूत और कुशवाहा के बीच का समीकरण ठीक होता है, तो एनडीए को इसका लाभ मिल सकता है।


मगध क्षेत्र की जातीय समीकरण

मगध क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण जातीय खाई भूमिहार और चंद्रवंशी के बीच है। नीतीश कुमार के निर्णय के बाद, जहानाबाद सीट भूमिहार से छीनकर चंद्रवंशी को दी गई, जिससे यह विवाद शुरू हुआ। 2019 में चंद्रेश्वर चंद्रवंशी ने किसी तरह जीत हासिल की, लेकिन भूमिहारों ने वादा किया कि 2024 में नीतीश इस गलती को नहीं दोहराएंगे। हालांकि, 2024 में भी चंद्रवंशी को टिकट दिया गया और वे इस बार बड़े अंतर से हार गए। अब भूमिहार और चंद्रवंशी एक-दूसरे के खिलाफ हैं, जबकि दोनों एनडीए समर्थक हैं।


इसी तरह, पासवान बनाम मांझी की खाई भी है। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी कई मुद्दों पर आमने-सामने हैं। पासवान एससी आरक्षण में वर्गीकरण का विरोध कर रहे हैं, जबकि मांझी इसके समर्थन में हैं। इमामगंज सीट पर उपचुनाव में चिराग ने मांझी की बहू का प्रचार नहीं किया, जिससे उनकी जाति के वोट प्रशांत किशोर की पार्टी के पासवान उम्मीदवार को चले गए।


मगध क्षेत्र में नीतीश बनाम चिराग पासवान का भी एक समीकरण है। पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग ने खुद को नरेंद्र मोदी का समर्थक बताकर चुनाव लड़ा था और नीतीश की पार्टी के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे थे। तब से दोनों के मतदाता एक-दूसरे को हराने के लिए तैयार हैं। चुनाव से पहले इन मुद्दों को भी सुलझाना होगा।