बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान मोदी का डिजिटल रोजगार पर जोर
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रोजगार के नए अवसर
बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान, नरेंद्र मोदी ने यह दावा किया कि उनकी सरकार ने डेटा की लागत को कम किया है, जिससे लोगों को कंटेंट बनाने के माध्यम से आय अर्जित करने का अवसर मिला है। उनका इशारा था कि बिहार के युवाओं को रील्स बनाने का रोजगार मिला है, जिससे वे अच्छी कमाई कर रहे हैं। यह सच है कि रील्स बनाना अब एक नए पेशे के रूप में उभरा है, जिसमें बड़ी संख्या में युवा, विशेषकर महिलाएं, शामिल हैं। अब यह सवाल उठता है कि क्या यूट्यूब, एक्स, फेसबुक, और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर तैयार किया जा रहा कंटेंट केवल पैसे कमाने के लिए है या इसके पीछे कोई नैरेटिव बनाने का उद्देश्य भी है?
वास्तव में, सोशल मीडिया पर एक बड़ा वर्ग है जो विभिन्न प्रकार की रील्स बनाकर पैसे कमा रहा है। वहीं, एक और वर्ग है जो नैरेटिव निर्माण में लगा हुआ है। सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स में कई अगड़ी जातियों के पत्रकार, लेखक और राजनीतिक विश्लेषक शामिल हैं, जो इस तकनीक का उपयोग नैरेटिव बनाने के लिए कर रहे हैं। इनमें से कई भाजपा या नरेंद्र मोदी के विरोधी हैं, जिनके फॉलोवर्स की संख्या लाखों में है, और इनमें से अधिकांश पिछड़ी, दलित जातियों या अल्पसंख्यकों से हैं। इसी तरह, एक अन्य वर्ग है जो भाजपा, नरेंद्र मोदी और सनातन धर्म का प्रचार कर रहा है, और उनके फॉलोवर्स की संख्या भी लाखों में है। ये दोनों वर्ग आम लोगों की राजनीतिक धारणा, सामाजिक विचार और मतदान व्यवहार को प्रभावित कर रहे हैं।
राजनीति से इतर, सोशल मीडिया ने सनातन धर्म के प्रचार के नाम पर धर्म, परंपरा और संस्कृति के प्रति एक नई श्रद्धा उत्पन्न की है, जो देखने में आश्चर्यजनक है। अब हर व्यक्ति दिन, तिथि और ग्रहों की स्थिति के अनुसार कार्य कर रहा है। पहले ज्योतिष, अंक गणना या टैरो कार्ड जैसी सुविधाएं केवल बड़े लोगों के लिए उपलब्ध थीं, लेकिन अब ये सभी के लिए उपलब्ध हैं। लोग घंटों ज्योतिषीय गणना में लगे रहते हैं। वे धर्म की बारीकियों के बारे में जो ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं, वह भी चौंकाने वाला है। इसका परिणाम यह हुआ है कि हर जगह मंदिर बन रहे हैं, यज्ञ हो रहे हैं, राम कथा और कृष्ण लीला का मंचन हो रहा है, कांवड़ यात्रा निकाली जा रही है, और सुंदरकांड का पाठ हो रहा है। इस सबके चलते ब्राह्मण, पंडे और पुजारियों का काम भी तेजी से चल रहा है। इस सबका राजनीति पर भी प्रभाव पड़ रहा है। हालांकि, इस प्रचार ने अंध श्रद्धा और अंधविश्वास को भी बढ़ावा दिया है, लेकिन यह एक अनिवार्य खामी है।