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बिहार में चुनावी गठबंधन की जटिलताएँ: छोटी पार्टियों का दबाव बढ़ा

बिहार की प्रमुख राजनीतिक पार्टियाँ जैसे राष्ट्रीय जनता दल, भाजपा और जनता दल यू चुनावी गठबंधन को लेकर दबाव में हैं। छोटी पार्टियों की बढ़ती मांगें और राजनीतिक समीकरणों की जटिलता ने स्थिति को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया है। एनडीए में शामिल छोटी पार्टियाँ अपनी सीटों की मांग कर रही हैं, जबकि इंडिया गठबंधन में भी सीटों को लेकर खींचतान जारी है। जानिए इस राजनीतिक परिदृश्य में क्या हो रहा है और आगे की संभावनाएँ क्या हैं।
 

बिहार की राजनीतिक स्थिति

बिहार की प्रमुख राजनीतिक पार्टियाँ, जैसे राष्ट्रीय जनता दल, भाजपा और जनता दल यू, वर्तमान में दबाव में हैं। छोटी सहयोगी पार्टियाँ अपनी मांगें बढ़ा रही हैं, यह जानते हुए कि चुनावों से पहले गठबंधन को बनाए रखना बड़ी पार्टियों की जिम्मेदारी है। एनडीए में तीन छोटी पार्टियाँ शामिल हैं: जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा। चिराग पासवान ने पिछले चुनाव में अकेले लड़ाई लड़ी थी, जबकि कुशवाहा ने एक अलग गठबंधन बनाया था जिसमें एमआईएम और बसपा शामिल थे। मांझी की पार्टी एनडीए का हिस्सा थी और उन्हें सात सीटें मिली थीं, जिनमें से चार पर जीत हासिल हुई थी। अब मांझी 15 से 20 सीटों की मांग कर रहे हैं और यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे 50 से 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि वे चिराग को साइज में लाने के लिए भाजपा का खेल खेल रहे हैं। चिराग 40 सीटों की मांग कर रहे हैं और 30 से कम पर राजी नहीं हैं। कुशवाहा ने अभी तक कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है, लेकिन उन्हें भी आठ से कम सीटें स्वीकार नहीं हैं।


इंडिया गठबंधन की स्थिति

इंडिया गठबंधन में राजद के अलावा पांच अन्य पार्टियाँ शामिल हैं, जिनमें कांग्रेस, तीन लेफ्ट पार्टियाँ और मुकेश सहनी की वीआईपी शामिल हैं। इसके अलावा, पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी और हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी गठबंधन में शामिल किया गया है। यहाँ भी राजनीतिक शह और मात का खेल चल रहा है। तेजस्वी यादव ने 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है, जबकि कांग्रेस भी इसी संख्या में सीटों की मांग कर रही है। मुकेश सहनी 60 सीटों की मांग कर रहे हैं और उनके नेता का कहना है कि 30 से कम सीटों पर समझौता नहीं होगा। लेफ्ट पार्टियों में सीपीआई और सीपीएम को कोई समस्या नहीं है, लेकिन सीपीआई एमएल को 40 सीटें चाहिए। पिछली बार उन्हें 19 सीटें मिली थीं। कांग्रेस पर सबसे ज्यादा दबाव है, जो पिछली बार की 70 सीटें फिर से हासिल करना चाहती है, जबकि गठबंधन में केवल 50 से 55 सीटों की गुंजाइश बन रही है। माना जा रहा है कि मुकेश सहनी के माध्यम से राजद ने कांग्रेस पर दबाव बनाया है।