बिहार में दलित राजनीति का उभार: नई चुनौतियाँ और अवसर
बिहार की राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव
बिहार में पिछले 35 वर्षों से पिछड़ी जातियों की राजनीति का वर्चस्व रहा है, जिसमें लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार प्रमुख चेहरे रहे हैं। लेकिन अब पहली बार दलित राजनीति ने जोर पकड़ा है, जबकि अगड़ी जातियाँ भी अपनी स्थिति को मजबूत करने में जुटी हैं। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के आगमन से अगड़ी जातियों के नेताओं की मांग बढ़ी है, वहीं दलित वोटों के लिए भी राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा तेज हो गई है। चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव में भाग लेने का निर्णय लिया है, जबकि जीतन राम मांझी केंद्रीय मंत्री बनने के बाद अधिक सक्रिय हो गए हैं.
कांग्रेस की नई रणनीति
इस राजनीतिक हलचल के बीच, कांग्रेस ने दलित समुदाय से राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है, जबकि मल्लिकार्जुन खड़गे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। राजेश राम जिस दलित जाति से आते हैं, उसका झुकाव पिछले चुनावों में राजद और कांग्रेस की ओर देखा गया है। इस स्थिति ने भाजपा और जनता दल यू की चिंता बढ़ा दी है। उन्हें पासवान और मांझी वोटों पर भरोसा है, लेकिन रविदास वोटों को लेकर उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए, जनता दल यू ने कांग्रेस के प्रमुख दलित नेता अशोक राम को अपने साथ जोड़ा है, जो पहले कांग्रेस विधायक दल के नेता रह चुके हैं और रविदास समाज में उनकी अच्छी पहचान है। उनकी पार्टी में शामिल होने से राजेश राम के प्रभाव को कम करने की संभावना है, विशेषकर पूर्वी और मिथिलांचल क्षेत्रों में.