बिहार में पसमांदा मुसलमानों को साधने की बीजेपी की नई रणनीति
बीजेपी की नई पहल
बिहार की राजनीतिक स्थिति में एक नई हलचल देखने को मिल रही है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी पसमांदा मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने की योजना बना रही है। पहले जिन पर मुसलमानों के खिलाफ होने का आरोप लगता था, अब वह मुस्लिम समुदाय के हाशिये पर खड़े वर्ग को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है। हाल ही में बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानों का एक सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हुईं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह रणनीति केवल चुनावी प्रयोग है या फिर सामाजिक प्रतिनिधित्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम।
पसमांदा मुसलमान कौन हैं?
बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी दानिश इकबाल के अनुसार, 'पसमांदा' एक फारसी शब्द है, जिसका अर्थ है पीछे छूटे हुए। यह शब्द उन मुस्लिम वर्गों के लिए उपयोग होता है, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से कमजोर माने जाते हैं। इनमें वे मुसलमान शामिल हैं, जो ऐतिहासिक रूप से दलित और पिछड़े हिंदू समुदायों से इस्लाम में आए हैं। बिहार में मुस्लिम आबादी लगभग 17.7% है, जिसमें से 73% पसमांदा समुदाय से आते हैं।
बीजेपी की नई वोट बैंक रणनीति
बीजेपी को पारंपरिक रूप से मुस्लिम वोट नहीं मिलते, लेकिन बिहार जैसे राज्यों में जहां मुस्लिम वोट महत्वपूर्ण होते हैं, वहां पसमांदा समुदाय को जोड़ना एक नई रणनीति है। बीजेपी ने पहले हिंदू समाज में पिछड़ी जातियों और दलितों को जोड़कर अपनी ताकत बढ़ाई है, और अब वह मुस्लिम समुदाय के OBC और दलित वर्गों को साथ लाने की कोशिश कर रही है।
पसमांदा सम्मेलनों का महत्व
बीजेपी बिहार में लगातार पसमांदा सम्मेलनों का आयोजन कर रही है, जहां समुदाय के मुद्दों को सुना जाता है और केंद्र की योजनाओं की जानकारी दी जाती है। पार्टी का उद्देश्य केवल वोट मांगने तक सीमित नहीं रहना है, बल्कि पसमांदा समाज से नेताओं को तैयार कर उन्हें पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका देने की योजना है।
बिहार की राजनीति में संभावित बदलाव
यदि बीजेपी अपनी रणनीति में सफल होती है और पसमांदा समुदाय को वास्तविक प्रतिनिधित्व और सम्मान देती है, तो यह बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। अब तक हाशिये पर रहे ये लोग अगर संगठित होकर अपनी आवाज उठाते हैं, तो राजनीति की दिशा बदल सकती है।