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बिहार में भाजपा और जदयू के बीच सत्ता की होड़

बिहार में भाजपा और जदयू के बीच सत्ता की होड़ तेज हो गई है। दोनों पार्टियों के बीच विधायकों की संख्या को लेकर प्रतिस्पर्धा चल रही है। भाजपा ने जदयू से चार सीटें अधिक प्राप्त की हैं, जिससे यह चर्चा बढ़ी है कि भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनाएगी। जदयू अपनी संख्या बढ़ाने के लिए अन्य पार्टियों के विधायकों से संपर्क कर रही है। जानें इस राजनीतिक खेल में क्या हो रहा है और किस तरह से दोनों पार्टियां एक-दूसरे को मात देने की कोशिश कर रही हैं।
 

भाजपा और जदयू के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा

बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन की प्रमुख पार्टियों, भाजपा और जदयू के नेताओं ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे को स्वीकार नहीं किया है, लेकिन यह सच है कि दोनों के बीच बड़ा बनने की होड़ चल रही है। विधायकों की संख्या के अनुसार, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है, क्योंकि उसे जदयू से चार सीटें अधिक मिली हैं। इस स्थिति के चलते चुनाव के बाद से यह चर्चा जोरों पर है कि भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनाएगी। इसके साथ ही यह भी अफवाहें फैली हैं कि भाजपा और जदयू के बीच ढाई-ढाई साल की सत्ता साझेदारी का समझौता हुआ है, जिसमें नीतीश कुमार को ढाई साल बाद सत्ता छोड़ने का प्रस्ताव दिया गया है।


इसके बाद, स्पीकर और गृह मंत्रालय को लेकर भी चर्चाएं हुईं। कहा गया कि जदयू ने स्पीकर का दावा इसलिए पेश किया है ताकि उसे गृह मंत्रालय न छोड़ना पड़े। लेकिन भाजपा के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को गृह मंत्रालय मिल गया, जिससे यह प्रचारित हुआ कि जदयू स्पीकर के लिए अड़ी हुई है और दामोदर रावत का नाम आगे आया है। वहीं, भाजपा की ओर से प्रेम कुमार का नाम चर्चा में है, हालांकि उनके क्षेत्र से ही एक अन्य चंद्रवंशी नेता को मंत्री बनाया गया है।


जदयू की कोशिशें और संभावित गठबंधन

हालांकि, असली राजनीतिक खबर इनमें से कोई नहीं है। असली मुद्दा यह है कि भाजपा और जदयू के बीच बड़ा बनने की होड़ जारी है। जदयू की कोशिश है कि किसी तरह से उसके विधायकों की संख्या बढ़ाई जाए ताकि वह सबसे बड़ी पार्टी बन सके। इसके लिए जदयू ने अपने कोटे के सात मंत्री पद खाली रखे हैं। हाल ही में बहुजन समाज पार्टी के एकमात्र विधायक पिंटू यादव से संपर्क किया गया था, जिन्हें पैसे और मंत्री पद का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन उन्होंने मना कर दिया।


इसके अलावा, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के चार विधायकों से संपर्क करने की भी खबरें हैं। कहा जा रहा है कि अगर बसपा और ओवैसी की पार्टी के विधायकों का समर्थन जदयू को मिल जाए, तो उसकी संख्या 91 हो जाएगी और वह भाजपा से बड़ी पार्टी बन जाएगी। पटना में यह भी चर्चा है कि कांग्रेस के कुछ विधायकों से भी जदयू के नेताओं ने संपर्क किया है, लेकिन दल बदल कानून के कारण कोई विधायक इस्तीफा देने को तैयार नहीं है।


भाजपा की रणनीति और जदयू की अफवाहें

हालांकि, कुछ कांग्रेस विधायकों के जदयू में शामिल होने की संभावना है, लेकिन वे स्पीकर के चुनाव का इंतजार कर रहे हैं। अगर स्पीकर जदयू का होता है, तो उन्हें उम्मीद है कि उनकी सदस्यता सुरक्षित रहेगी। भाजपा इस स्थिति पर नजर रखे हुए है और स्पीकर का पद अपने पास रखना चाहती है। अगर स्पीकर भाजपा का होता है, तो दूसरी पार्टियों के विधायकों में टूट की संभावना कम हो जाएगी।


जदयू को सबसे बड़ी पार्टी बनाने के प्रयास में एक दिलचस्प अफवाह यह उड़ी थी कि तेजस्वी यादव को छोड़कर उनके बाकी सभी 24 विधायक जदयू में शामिल हो रहे हैं। कहा गया कि जैसे पिछले विधानसभा में नीतीश कुमार ने एमआईएम के चार विधायकों को राजद में शामिल करवा कर उसे सबसे बड़ी पार्टी बनवाया था, उसी तरह इस बार राजद अपने विधायकों को भेजकर जदयू को सबसे बड़ी पार्टी बनवाएगी। हालांकि, इन अफवाहों का तुरंत खंडन कर दिया गया।