बिहार में भाजपा की बढ़ती ताकत: राजनीतिक समीकरण और भविष्य की संभावनाएं
भाजपा का उभार
बिहार में पहली बार विधायकों की संख्या के मामले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। यह एक लंबे संघर्ष और राजनीतिक रणनीति का परिणाम है। जब भाजपा बिहार विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, तब भी उसने नीतीश कुमार के चेहरे का सहारा लिया था। भाजपा के नेताओं को यह समझ था कि मंडल की राजनीति को साधने के लिए एक मजबूत चेहरे की आवश्यकता है। अब यह आवश्यकता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इसका एक कारण यह है कि भाजपा ने भी लगभग पूरी तरह से मंडलाइजेशन कर लिया है।
पिछड़ी जातियों का नेतृत्व
बिहार में भाजपा का नेतृत्व अब मुख्य रूप से पिछड़ी जातियों के हाथ में है, और यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहने की संभावना है। राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पिछड़ी जातियों से है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अति पिछड़ी जाति से होने की जानकारी भाजपा ने उत्तर भारत में प्रचारित की है। मंडल और कमंडल की राजनीति को एकीकृत करने के कारण भाजपा को किसी तीसरे चेहरे की आवश्यकता नहीं रह गई है।
भाजपा का राजनीतिक आधार
बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम भाजपा को एक प्रमुख राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करने वाले हैं। भाजपा ने नीतीश कुमार के वोट आधार का लाभ उठाया है, साथ ही उनके सुशासन और व्यक्तिगत छवि के कारण भी एनडीए को फायदा हुआ है। हालांकि, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भाजपा का अपना एक मजबूत राजनीतिक आधार है।
पार्टी के वोट प्रतिशत
यदि हम तीनों पार्टियों के वोट प्रतिशत की बात करें, तो 2014 के लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव को आधार माना जाएगा। 2014 में भाजपा को 29.86% वोट मिले थे, जबकि राजद को 20.46% और जदयू को 16% वोट मिले थे। 2015 में भाजपा ने छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और उसे 24.40% वोट मिले।
भाजपा का भविष्य
इस बार का चुनाव भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। नतीजों के बाद भाजपा का मुख्यमंत्री बनना केवल समय की बात है। सम्राट चौधरी के नेतृत्व में भाजपा को एक मजबूत वोट आधार मिल सकता है। नीतीश कुमार के हटने के बाद भाजपा बिहार में स्थायी रूप से सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है।
मुस्लिम वोट और राजनीतिक समीकरण
बिहार में मुस्लिम विधायकों की संख्या घट रही है, लेकिन मुस्लिम वोट का पोलराइजेशन भी हो रहा है। नीतीश कुमार भाजपा के लिए एक बफर की तरह काम करते रहे हैं। उनकी उपस्थिति से भाजपा को बिहार में खुला मैदान नहीं मिल पाता। आने वाले समय में यह स्थिति बदल सकती है।
भाजपा की रणनीति
भाजपा ने उत्तर प्रदेश में सवर्ण चेहरे के माध्यम से सामाजिक समीकरण साधा है, लेकिन बिहार में उसे पिछड़े चेहरों के साथ सामाजिक समीकरण बनाना होगा। नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर के अंत के साथ भाजपा को इस दिशा में बढ़ने का अवसर मिल सकता है।