बिहार में मतदाता सूची विवाद: सुप्रीम कोर्ट में आज होगी महत्वपूर्ण सुनवाई
बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
बिहार में मतदाता सूची पर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान: बिहार में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्यक्रम (एसआईआर) को लेकर इस समय दो प्रमुख विवाद चल रहे हैं। एक तरफ, विपक्ष इसे चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, वहीं दूसरी ओर, इस प्रक्रिया की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस मामले की सुनवाई 12 अगस्त को होगी, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ याचिकाओं पर विचार करेगी।
आज सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण सुनवाई
आपको जानकारी दे दें कि 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने एसआईआर प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और चुनाव आयोग को इसे आगे बढ़ाने की अनुमति दी थी। हालांकि, मतदाता सूची से लाखों नाम हटाए जाने का मुद्दा विवादों में बना हुआ है। चुनाव सुधार से जुड़ी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि इस प्रक्रिया के तहत बिहार के लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम बिना किसी स्पष्ट कारण के हटा दिए गए हैं।
चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण, प्रक्रिया वैधानिक है
चुनाव आयोग ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कोर्ट में हलफनामा पेश किया है। आयोग का कहना है कि ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल न किए गए व्यक्तियों की अलग सूची प्रकाशित करना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है। इसके अलावा, आयोग ने स्पष्ट किया है कि ड्राफ्ट सूची सभी राजनीतिक दलों के साथ साझा की गई है और यदि किसी व्यक्ति का नाम उसमें नहीं है, तो उसके पास अपनी आपत्ति दर्ज कराने का पूरा अधिकार है।
आयोग का पलटवार, याचिकाएं भ्रामक
चुनाव आयोग ने कोर्ट से याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है और याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना लगाने का अनुरोध भी किया है। आयोग का आरोप है कि ये याचिकाएं अदालत को भ्रमित करने का प्रयास हैं और इन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। आयोग ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता हटाए गए मतदाता नामों की सूची को अधिकारपूर्वक मांग नहीं सकते क्योंकि ऐसी कोई प्रक्रिया कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर उठते सवाल
बिहार में मतदाता सूची से जुड़े इस विवाद ने चुनावी राजनीति के साथ-साथ संवैधानिक और कानूनी चर्चाओं को भी जन्म दिया है। आज की सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई यह स्पष्ट कर सकती है कि क्या एसआईआर की प्रक्रिया पारदर्शी है या इसमें व्यापक संशोधन की आवश्यकता है। यह मामला न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की निष्पक्षता के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है।