बिहार में महागठबंधन की चुनौतियाँ: क्या कन्हैया कुमार बनेंगे युवा चेहरा?
बिहार में महागठबंधन की स्थिति
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर महागठबंधन के अंदर तनाव की स्थिति लगातार बनी हुई है, जो छुपाने लायक नहीं है। बुधवार को 'बिहार बंद' के दौरान यह तनाव स्पष्ट रूप से देखने को मिला, जब लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और RJD के तेजस्वी यादव खुली ट्रक पर सवार होकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार भी ट्रक पर मौजूद थे, लेकिन सुरक्षा कारणों से उन्हें तुरंत नीचे उतार दिया गया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि लालू परिवार उन्हें पूरी तरह से स्वीकार नहीं कर रहा है।
कन्हैया कुमार की भूमिका
कन्हैया कुमार ने पिछले महीने स्पष्ट किया था कि तेजस्वी यादव महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे RJD के नेतृत्व को स्वीकार कर रहे हैं। फिर भी, उन्हें ट्रक से उतारना उनके प्रति स्वीकार्यता की कमी को दर्शाता है।
कांग्रेस में कन्हैया का स्थान
कांग्रेस में कन्हैया का भूमिका — क्रेड करना या चुनौती?
कांग्रेस नेतृत्व, विशेषकर राहुल गांधी, कन्हैया को बिहार में युवा नेता के रूप में बढ़ावा दे रहे हैं। जब राहुल ने बगुसराय में 'पलायन रोको, नौकरी दो' पदयात्रा में कन्हैया के साथ कदम मिलाया, तब यह स्पष्ट संकेत था कि कांग्रेस युवा वोटरों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।
गठबंधन की एकता और दरारें
गठबंधन की सतही एकता और गहरी दरार
बिहार में गठबंधन की सतही एकता स्पष्ट है: कांग्रेस ने तेजस्वी को सीएम चेहरा स्वीकार किया है; कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डिग्विजय सिंह ने भी तेजस्वी का समर्थन किया। लेकिन जून में कन्हैया और राहुल को रथ से बाहर निकालने की घटना ने सुझाव दिया कि गठबंधन की प्रतीकात्मक एकता के पीछे गहरी आपसी खींचतान है।
आंतरिक आलोचना
अंदरूनी आलोचना और विरोध का स्वर
कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने कन्हैया की उस पदयात्रा को लेकर नाराजगी जताई थी जिसमें उन्होंने युवा रोजगार और पलायन का मुद्दा उठाया—यह मुद्दा तेजस्वी का परंपरागत एजेंडा है।
गठबंधन का भविष्य
क्या होगा गठबंधन का भविष्य?
विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी यादव संरक्षित नेतृत्व क्षमता और पुरानी राजनीतिक विरासत के कारण गठबंधन में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। कन्हैया की भूमिका अभी स्पष्ट नहीं है; हालांकि युवा जनांदोलन में उनकी पकड़ मजबूत है, लेकिन कोई पार्टी नेतृत्व के रूप में उन्हें अब तक स्वीकार नहीं कर रहा है।
गठबंधन की मजबूती के लिए आवश्यक है कि सभी घटक दल, खासकर कांग्रेस और RJD, आपसी मतभेदों को स्थगित करें और सामूहिक रणनीति अपनाएं। फिलहाल, 'बाहर से' एकता दिख रही है लेकिन 'भीतर' स्थिति विभाजित बनी हुई है। आगामी चुनावों में यह देखना होगा कि गठबंधन कितनी गहराई तक एकता प्रदर्शित कर पाता है—और क्या कन्हैया के साथ शामिल कांग्रेस समाज को एक मजबूत विकल्प दिखा सकती है?