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बिहार में मुफ्त सेवाओं की राजनीति: क्या यह विकास का सही रास्ता है?

बिहार में मुफ्त सेवाओं की राजनीति ने एक नई दिशा ली है, जहां सरकारें चुनावी लाभ के लिए विभिन्न योजनाएं पेश कर रही हैं। इस लेख में हम देखेंगे कि कैसे मुफ्त बिजली, पानी और अन्य सेवाएं राजनीतिक दलों के लिए चुनावी हथियार बन गई हैं। क्या यह विकास का सही रास्ता है, या यह नागरिकों को सरकार पर निर्भर बना रही है? जानें इस लेख में बिहार की स्थिति और इसके पीछे की राजनीति के बारे में।
 

मुफ्त सेवाओं का बढ़ता चलन

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मुफ्त बिजली और पानी देने की घोषणा की, जिसके बाद अन्य राजनीतिक दलों ने भी इसी तरह की योजनाएं पेश कीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 'मुफ्त की रेवड़ी' की राजनीति करार दिया था, यह कहते हुए कि इससे देश को नुकसान होगा। हालांकि, यह जुमला जल्दी ही बदल गया, क्योंकि मुफ्त सेवाओं की घोषणा से विपक्षी दलों को चुनावों में सफलता मिलने लगी। केजरीवाल ने दिल्ली के बाद पंजाब में भी जीत हासिल की। 2023 में कांग्रेस ने कर्नाटक में चुनाव जीते, और भाजपा ने भी इन योजनाओं के माध्यम से सफलता पाई। मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना योजना और छत्तीसगढ़ में महतारी वंदन योजना ने भाजपा को जीत दिलाई। प्रधानमंत्री मोदी ने छत्तीसगढ़ में मुफ्त अनाज वितरण की योजना 2029 तक जारी रखने की घोषणा की, जिसका प्रभाव 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा।


बिहार की स्थिति

बिहार में इस मुफ्त सेवाओं की राजनीति का एक अलग ही रूप देखने को मिल रहा है। बिहार को भारत का सबसे पिछड़ा राज्य माना जाता है, और नीति आयोग के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स में यह हर पैरामीटर पर सबसे नीचे है। इसके बावजूद, पिछले 20 वर्षों से एक ही पार्टी की सरकार है। वर्तमान में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद, यह सरकार सार्वजनिक निवेश के माध्यम से विकास की योजना पर काम नहीं कर रही है। इसके बजाय, निजी निवेश को बढ़ावा दिया जा रहा है, जैसे कि अडानी समूह को एक रुपए की दर पर एक हजार करोड़ रुपए की जमीन दी गई है।


मुफ्त योजनाओं का प्रभाव

बिहार सरकार ने मुख्यमंत्री महिला उद्यमी योजना के तहत एक करोड़ 21 लाख महिलाओं के खातों में 10-10 हजार रुपए भेजे हैं। बेरोजगार स्नातकों को हर महीने एक हजार रुपए दिए जाएंगे, और नए पंजीकृत वकीलों को तीन साल तक पांच-पांच हजार रुपए मिलेंगे। शिक्षा क्षेत्र में विकास मित्रों को 25-25 हजार रुपए टैबलेट के लिए दिए गए हैं। इसके अलावा, 125 यूनिट बिजली मुफ्त कर दी गई है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन को चार सौ रुपए से बढ़ाकर 11 सौ रुपए किया गया है।


आर्थिक आत्मनिर्भरता की कमी

हालांकि, बिहार में कई उद्योग बंद पड़े हैं, जैसे कि चीनी मिलें और कपड़े की फैक्ट्रियां। कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है, और आईटी पार्क या फूड पार्क जैसी योजनाएं भी नहीं बनाई जा रही हैं। केवल मुफ्त सेवाओं और पैसे के वितरण पर जोर दिया जा रहा है। महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल ने भी इस पर चिंता जताई है कि इस तरह की योजनाओं के कारण राज्य सरकार की अन्य योजनाएं ठप हो गई हैं। यह सोच नागरिकों को सशक्त बनाने के बजाय उन्हें सरकार पर निर्भर बना रही है।