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बिहार में राज्यसभा चुनाव: एनडीए की स्थिति और दावेदारों की चर्चा

बिहार में अप्रैल 2026 में राज्यसभा की पांच सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं। एनडीए की मजबूत स्थिति और दावेदारों की चर्चा इस चुनाव को दिलचस्प बनाती है। जानें कौन हैं प्रमुख दावेदार, जैसे नितिन नवीन और भोजपुरी स्टार पवन सिंह। इसके अलावा, पांचवीं सीट को लेकर चल रहे विवाद और विपक्ष की चुनौती पर भी नजर डालें। क्या एनडीए अपनी स्थिति को बनाए रख पाएगा? जानने के लिए पूरा लेख पढ़ें।
 

बिहार में राज्यसभा चुनाव की तैयारी


अप्रैल 2026 में बिहार में राज्यसभा की पांच सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं। मौजूदा सांसदों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, जिसमें जेडीयू के हरिवंश और राम नाथ ठाकुर, आरजेडी के प्रेम चंद गुप्ता और एडी सिंह, तथा राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के उपेंद्र कुशवाहा शामिल हैं।


एनडीए की स्थिति

बिहार विधानसभा में एनडीए के पास मजबूत बहुमत है, जिससे वह चार सीटें आसानी से जीत सकता है। हालांकि, पांचवीं सीट के लिए उसे कुछ अतिरिक्त सहयोग की आवश्यकता हो सकती है। इसी कारण एनडीए के छोटे सहयोगी दल इन सीटों पर अपने दावे पेश कर रहे हैं।


दावेदारों की सूची

बीजेपी से नितिन नवीन का नाम सबसे आगे है। वे बांकीपुर से विधायक हैं और हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बने हैं। इसके अलावा, भोजपुरी स्टार पवन सिंह का नाम भी चर्चा में है। जेडीयू के हरिवंश और राम नाथ ठाकुर को फिर से मौका मिल सकता है, क्योंकि वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं।


उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम भी अपनी सीट के लिए दावा कर रही है, लेकिन चार विधायकों वाली पार्टी के लिए यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है।


पांचवीं सीट का विवाद

पांचवीं सीट को लेकर केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के लिए दावा कर रहे हैं। वे अपनी मां रीना पासवान को राज्यसभा भेजना चाहते हैं। हालांकि, पार्टी के 19 विधायक होने के बावजूद, अकेले जीतना उनके लिए कठिन हो सकता है। जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा भी इस सीट पर नजर गड़ाए हुए है।


विपक्ष की चुनौती

यदि विपक्ष एकजुट हो जाए, तो वह एक सीट जीत सकता है। महागठबंधन के पास लगभग 41 विधायक हैं, लेकिन अनुशासन और एकता की कमी से उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एनडीए की मजबूती के कारण विपक्ष का प्रतिनिधित्व कम हो सकता है।