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बिहार में सवर्णों की राजनीतिक स्थिति: 2025 के चुनाव की तैयारी

बिहार में 2025 का विधानसभा चुनाव सवर्णों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद से सवर्णों का वर्चस्व चर्चा का विषय रहा है। इस बार के चुनाव में अगड़ी जातियों की भूमिका और टिकट बंटवारे की दिलचस्प तस्वीर ने राजनीतिक समीकरणों को बदल दिया है। जानिए कैसे महागठबंधन और एनडीए ने सवर्णों को टिकट देकर चुनावी रणनीति बनाई है।
 

नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री बनने का सफर

जब नीतीश कुमार 2005 में पूर्ण बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बने, तब एक नारा बहुत प्रचलित हुआ था, 'ताज कुर्मी का, राज भूमिहार का'। हालांकि, यह ताज और राज दोनों ही नीतीश कुमार के पास थे। उस समय ललन सिंह सबसे प्रभावशाली मंत्री थे। चुनाव हारने के बावजूद, नीतीश कुमार ने विजय चौधरी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया। अभयानंद, जो बिहार के पुलिस प्रमुख बने, ने कानून व्यवस्था को सुधारकर लोगों में सुरक्षा का विश्वास जगाया। यह कदम 2010 में एनडीए की ऐतिहासिक जीत का मुख्य कारण बना। तब से, नीतीश राज में सवर्णों के वर्चस्व की चर्चा होती रही है.


2025 का विधानसभा चुनाव: एक महत्वपूर्ण मोड़

2025 का विधानसभा चुनाव सवर्णों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। 35 वर्षों की मंडल राजनीति के बीच, अगड़ी जातियों में यह धारणा बन गई थी कि सत्ता उनके हाथ में नहीं आएगी। इसके साथ ही, यह भी महसूस किया गया कि किसी एक पार्टी के प्रति बंधुआ बनकर रहना नुकसानदायक होगा। इस बार का चुनाव इन दोनों धारणाओं का चरम था। एक ओर, पिछड़ी जातियों के बीच सत्ता का संघर्ष था, जबकि दूसरी ओर, सवर्ण जातियों में यह भावना थी कि किसी भी नृप का होना उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगा.


टिकट बंटवारे की दिलचस्प तस्वीर

बिहार में टिकट बंटवारे के समय एक दिलचस्प स्थिति बनी। लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव की पार्टी ने खुलकर भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत और कायस्थ को टिकट देने का ऐलान किया। वहीं, प्रशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में कदम रखा। इस कारण यह धारणा बनी कि अगड़ी जातियां, विशेषकर भूमिहार और ब्राह्मण, प्रशांत किशोर के साथ जा रही हैं। इस स्थिति ने भाजपा और जनता दल यू को मजबूर किया कि वे अधिक से अधिक सवर्ण उम्मीदवार उतारें.


महागठबंधन का अगड़ी जातियों को टिकट देने का प्रयास

महागठबंधन की पार्टियों ने भी अगड़ी जातियों को टिकट देने में उदारता दिखाई। राष्ट्रीय जनता दल ने इस बार छह भूमिहार उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिनमें से दो ने जीत हासिल की। जहानाबाद सीट पर तेजस्वी यादव ने मौजूदा विधायक को हटा कर एक नए उम्मीदवार को टिकट दिया, जो अंततः जीत गए। यह जीत बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ लाने वाली साबित हुई.


सवर्ण विधायकों की संख्या में वृद्धि

बिहार में इस बार 73 सवर्ण विधायक चुने गए हैं, जिनमें राजपूत सबसे अधिक 32 हैं, जबकि भूमिहार 25, ब्राह्मण 14 और कायस्थ 2 हैं। बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा में 30% सवर्ण विधायक हैं, जबकि उनकी जनसंख्या केवल 10% है। इस बार की सरकार में 26 मंत्रियों में से लगभग एक तिहाई यानी आठ मंत्री सवर्ण हैं. हालांकि, यह संख्या पूरी तस्वीर नहीं दिखाती। चुनाव में सवर्णों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है, और उनकी उम्मीदें भी उनके नेताओं पर टिकी हुई हैं.