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बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में भाजपा की चुनौतियाँ

बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को चुनाव प्रभारी की नियुक्ति में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चुनाव की घोषणा में अब केवल तीन महीने का समय बचा है, लेकिन पार्टी ने अभी तक प्रभारी की घोषणा नहीं की है। इस बीच, राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि कौन इस महत्वपूर्ण भूमिका में होगा। भाजपा को पिछड़ी जातियों का समर्थन जुटाने की आवश्यकता है, खासकर जब राजद और कांग्रेस की रणनीतियाँ सक्रिय हैं। जानें इस चुनावी परिदृश्य में भाजपा की रणनीतियाँ और चुनौतियाँ।
 

चुनाव की घोषणा की तैयारी

बिहार विधानसभा चुनाव में अब केवल तीन महीने का समय बचा है। सितंबर के अंत या अक्टूबर के पहले सप्ताह में चुनाव की आधिकारिक घोषणा होने की संभावना है। इस संदर्भ में, भाजपा ने अभी तक चुनाव प्रभारी की नियुक्ति नहीं की है, जबकि आमतौर पर यह प्रक्रिया काफी पहले शुरू हो जाती है। उदाहरण के लिए, झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा को वहां का चुनाव प्रभारी बनाया गया था। इसी तरह, धर्मेंद्र प्रधान हरियाणा और भूपेंद्र यादव महाराष्ट्र के चुनाव प्रभारी बने थे। हाल के दिनों में भाजपा ने एक राज्य में दो मंत्रियों को चुनाव प्रभारी के रूप में नियुक्त करने की प्रवृत्ति अपनाई है। झारखंड में तो एक केंद्रीय मंत्री के साथ एक मुख्यमंत्री को भी नियुक्त किया गया था।


भाजपा के अंदर की चर्चा

हालांकि, बिहार में चुनाव की घोषणा में अब दो महीने से भी कम समय बचा है और अभी तक चुनाव प्रभारी की नियुक्ति नहीं हुई है। इस बीच, बिहार में यह चर्चा तेज हो गई है कि कौन चुनाव प्रभारी बनेगा। बिहार भाजपा के प्रभारी विनोद तावड़े हैं, जबकि संगठन प्रभारी भीखूभाई दलसानिया हैं। इसके अलावा, बिहार और झारखंड के संघ के संयोजक नागेंद्र और बिहार के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल भी चुनाव की तैयारियों में जुटे हुए हैं। दोनों उप मुख्यमंत्री भी चुनाव की तैयारियों में सक्रिय हैं। लेकिन सीटों और टिकटों का बंटवारा असली काम चुनाव प्रभारी को ही करना होता है। क्या धर्मेंद्र प्रधान या भूपेंद्र यादव में से कोई बिहार का चुनाव प्रभारी बनेगा? ये दोनों केंद्रीय मंत्री लंबे समय तक बिहार के प्रभारी रह चुके हैं और दोनों पिछड़ी जाति से आते हैं।


राजनीतिक रणनीतियाँ

बिहार में राजद, कांग्रेस और वामपंथियों की रणनीतियों के मुकाबले भाजपा को भी पिछड़ी जातियों का समर्थन जुटाने की आवश्यकता है। इसी संदर्भ में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का नाम भी चर्चा में है। इसके साथ ही, भाजपा को प्रशांत किशोर की रणनीतियों का भी सामना करना होगा, जिनकी वजह से ब्राह्मण और भूमिहार जैसी अगड़ी जातियों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा से दूर होता दिख रहा है।