×

बिहार विधानसभा चुनाव: क्या प्रशांत किशोर की पार्टी NDA को देगी कड़ी टक्कर?

बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में मतदान जारी है, जिसमें 20 जिलों की 122 सीटों पर 3.7 करोड़ मतदाता अपने मत का प्रयोग कर रहे हैं। इस बार एनडीए और महागठबंधन के बीच मुख्य मुकाबला है, लेकिन प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज भी चुनौती पेश कर रही है। एग्जिट पोल के माध्यम से संभावित चुनाव परिणामों का अनुमान लगाया जाएगा। जानें एग्जिट पोल के नियम और इसके उल्लंघन पर क्या सजा हो सकती है।
 

बिहार में मतदान का दूसरा चरण


बिहार: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 विधानसभा सीटों पर मतदान जारी है। इस चरण में कुल 1302 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, और लगभग 3.7 करोड़ मतदाता अपने मत का प्रयोग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के माध्यम से कर रहे हैं। चुनाव परिणाम 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे, लेकिन इससे पहले विभिन्न एग्जिट पोल्स के जरिए संभावित रुझानों का अनुमान लगाया जाएगा।


सत्ताधारी और विपक्षी गठबंधन की स्थिति

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नेतृत्व
बिहार में वर्तमान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार है। 2005 से 2020 तक हर विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गठबंधन को जीत मिली है। 2015 में महागठबंधन ने जीत हासिल की थी, जिसमें जनता दल (यूनाइटेड) भी शामिल था। इस बार मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच माना जा रहा है।


NDA को PK की पार्टी से चुनौती

चुनावी परिदृश्य में बदलाव
चुनावी परिदृश्य को बहुकोणीय बनाने के प्रयास में प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी चुनावी मैदान में हैं। एनडीए को इस बार महागठबंधन के साथ-साथ पीके की पार्टी से भी कड़ी चुनौती मिल रही है। बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं, जिनमें पहले चरण में 121 सीटों पर 6 नवंबर को मतदान हुआ था। पहले चरण में मतदान दर 65 प्रतिशत से अधिक रही थी।


एग्जिट पोल: प्रक्रिया और नियम

एग्जिट पोल क्या है?
एग्जिट पोल एक सर्वेक्षण है, जिसमें मतदान केंद्र से बाहर आने वाले मतदाताओं से सवाल पूछे जाते हैं कि उन्होंने किस पार्टी को वोट दिया। इन प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करके संभावित चुनाव परिणामों का अनुमान लगाया जाता है। भारत में कई एजेंसियां यह सर्वे करती हैं। एग्जिट पोल मतदान वाले दिन ही किया जाता है, इसलिए इसे 'एग्जिट पोल' कहा जाता है।


एग्जिट पोल के नियम और उल्लंघन

कानूनी दिशा-निर्देश
भारत में एग्जिट पोल के लिए सख्त गाइडलाइंस हैं। पहली बार 1998 में एग्जिट पोल पर दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट, 1951 के तहत, सभी चरणों की वोटिंग खत्म होने से पहले एग्जिट पोल प्रकाशित करना प्रतिबंधित है। अंतिम चरण की वोटिंग खत्म होने के बाद भी आधे घंटे तक एग्जिट पोल दिखाने पर रोक है।


उल्लंघन की सजा
यदि कोई व्यक्ति या मीडिया इन नियमों का उल्लंघन करता है, तो चुनाव आयोग की गाइडलाइंस के तहत उसे दो साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। इस तरह की सख्ती का उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष और प्रभावी बनाना है। बिहार के दूसरे चरण के मतदान और एग्जिट पोल का विश्लेषण इस बार चुनावी परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, क्योंकि इससे मतदाताओं की प्राथमिकताओं और गठबंधनों की ताकत का शुरुआती अंदाजा लगाया जा सकेगा।