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बिहार विधानसभा चुनाव: महागठबंधन में सीट बंटवारे पर असहमति

बिहार विधानसभा चुनाव 2024 की तैयारी में महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर गंभीर असहमति देखने को मिल रही है। विभिन्न दलों के नेता अपनी-अपनी मांगें रख रहे हैं, जिससे स्थिति और जटिल होती जा रही है। जानें इस राजनीतिक उठापटक के पीछे की वजहें और संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं।
 

महागठबंधन की चुनौतियाँ

बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आ रही हैं, लेकिन महागठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बन पा रही है। पिछले साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगियों की हार के बाद, नेताओं ने माना था कि अगर सीटों का बंटवारा समय पर और बिना विवाद के होता, तो परिणाम बेहतर हो सकते थे। इसके बावजूद, बिहार में स्थिति अलग है, जहां सभी दल एक-दूसरे पर दबाव बनाने में लगे हैं। महागठबंधन की चौथी बैठक 12 जून को हुई, लेकिन इसमें भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका।


सहयोगी दलों के नेताओं ने अनावश्यक सीटों की मांग करके स्थिति को और बिगाड़ दिया है। सीपीआई माले के नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि उनकी पार्टी 40 से 45 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि पिछली बार उन्होंने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 12 पर जीत हासिल की थी। इसी उत्साह में उन्होंने अधिक सीटें मांग लीं। दूसरी ओर, मुकेश सहनी ने 60 से कम सीटों पर लड़ने से इनकार कर दिया। कांग्रेस का भी यही कहना है कि वह पिछली बार की तरह 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इस प्रकार, बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से 170 सीटें तीन सहयोगी दलों के बीच बांट ली गई हैं, जबकि राजद के लिए 73 सीटें बची हैं। पिछली बार राजद ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा था और इस बार भी वह 140 से कम सीटों पर लड़ने का इरादा नहीं रखती।


वास्तव में, सीपीआई माले 25 से 30, मुकेश सहनी की वीआईपी 25 से 30 और कांग्रेस 45 से 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। इसके साथ ही, पशुपति पारस की पार्टी को भी समायोजित करना होगा, और राजद को 140 से कम सीटों पर नहीं लड़ना है।