बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की गुडविल का असर
नीतीश कुमार की अहमियत
बिहार विधानसभा चुनाव में एक महत्वपूर्ण पहलू यह रहा कि सभी दलों को नीतीश कुमार के सद्भाव की आवश्यकता महसूस हुई। भाजपा और लोजपा जैसे एनडीए के नेताओं ने नीतीश का नाम बार-बार लिया, लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को भी उनके गुडविल के वोट की आवश्यकता थी।
इसलिए, राजद के नेताओं ने कई तरह की अफवाहें फैलाना शुरू किया। जब यह स्पष्ट हो गया कि अफवाहों से काम नहीं बनेगा, तो पार्टी ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल के माध्यम से मतदाताओं को गुमराह करने का प्रयास किया। इससे पहले, राबड़ी देवी समेत राजद के सभी नेताओं ने नीतीश के प्रति सद्भाव दिखाना शुरू कर दिया था।
वे इस बात पर वोट मांग रहे थे कि भाजपा ने नीतीश को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया है। इसके सहारे यह संदेश फैलाया गया कि तेजस्वी यादव उन्हें सीएम बना सकते हैं। राजद के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से कहा गया कि जनता दल यू के समर्थक भाजपा और लोजपा को वोट नहीं दे रहे हैं।
राजद के नेता जमीनी स्तर पर प्रचार कर रहे थे कि ‘लालटेन ही तीर है’। इसका अर्थ यह था कि जहां जनता दल यू का उम्मीदवार नहीं है, वहां राजद का उम्मीदवार नीतीश का विकल्प है। इस प्रकार, नीतीश के समर्थकों को समझाया जा रहा था कि वे जनता दल यू को वोट दें और जहां उसका उम्मीदवार नहीं है, वहां भाजपा और लोजपा के बजाय राजद को वोट करें।
इस आधार पर केवल राजद के लिए वोट मांगा जा रहा था, जबकि कांग्रेस, लेफ्ट या वीआईपी के लिए नहीं। पूरे चुनाव के दौरान, राजद नेताओं ने यह बताने का प्रयास किया कि चुनाव के बाद नीतीश फिर से महागठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं। इस प्रचार में कई यूट्यूब चैनल और इन्फ्लूएंसर्स भी शामिल थे। हालांकि, इस प्रचार में ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई।