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बिहार विधानसभा चुनाव: सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी इंडिया गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला

बिहार विधानसभा चुनाव 2023 की तैयारी जोरों पर है, जहां सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी इंडिया गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर जनता का समर्थन मांगेंगे, जबकि विपक्ष बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और 'वोट चोरी' जैसे मुद्दों पर आक्रामक रुख अपनाए हुए है। जातिगत समीकरण और केंद्र सरकार की नई योजनाएं इस चुनाव को और भी महत्वपूर्ण बना रही हैं। जानें इस चुनाव के प्रमुख मुद्दे और राजनीतिक रणनीतियाँ।
 

बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी

बिहार विधानसभा चुनाव: बिहार की राजनीतिक स्थिति एक बार फिर से गर्म हो गई है। चुनाव आयोग अक्टूबर के पहले सप्ताह में विधानसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा कर सकता है। इस बार का चुनाव काफी दिलचस्प होने की उम्मीद है, क्योंकि खबरों के अनुसार, चुनाव केवल दो चरणों में संपन्न हो सकते हैं, जबकि पहले तीन चरणों की चर्चा थी। मुकाबला सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन और विपक्षी इंडिया गठबंधन के बीच होगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो पिछले बीस वर्षों से सत्ता में हैं, जनता से एक बार फिर समर्थन मांगेंगे। दूसरी ओर, विपक्ष बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और 'वोट चोरी' जैसे मुद्दों पर आक्रामक रुख अपनाए हुए है.


विपक्ष का आक्रामक रुख

कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी सभाओं में लगातार आरोप लगा रहे हैं कि, 'बिहार में चुनावों में वोट चोरी की परंपरा रही है, इस बार जनता इसका हिसाब मांगेगी।' वहीं, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे पर सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे हैं। उनका कहना है कि, 'नीतीश कुमार ने युवाओं को नौकरी का वादा किया था, लेकिन आज भी लाखों लोग राज्य से बाहर पलायन करने को मजबूर हैं.'


जातिगत समीकरण का नया खेल

2023 में कराए गए जातीय सर्वेक्षण ने इस चुनाव को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। रिपोर्ट के अनुसार,



  • पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग: 63%

  • यादव: 14%

  • ईबीसी: 36%

  • अनुसूचित जातियां: 19%

  • सवर्ण: 15%

  • मुस्लिम आबादी: 17%


सर्वेक्षण के आधार पर नीतीश सरकार ने नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 65% कर दिया था। हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी, लेकिन इससे नीतीश की ओबीसी नेता वाली छवि मजबूत हुई है.


केंद्र सरकार की नई चाल

दिलचस्प बात यह है कि अप्रैल 2025 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय जाति जनगणना के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। भाजपा, जो लंबे समय तक इस मुद्दे से दूर रही थी, अब इसे मानकर विपक्ष का बड़ा हथियार छीनने की कोशिश कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भाजपा को ओबीसी वोट बैंक में और अधिक पैठ बनाने के साथ-साथ हिंदू एकजुटता की राजनीति को साधने में मदद करेगा। नीतीश कुमार अपनी छवि और भाजपा के साथ गठबंधन पर भरोसा करेंगे। उनका ध्यान विकास और स्थिरता के संदेश पर होगा। वहीं, विपक्ष राहुल गांधी 'वोट चोरी' को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में जुटे हैं, जबकि तेजस्वी बेरोजगारी और पलायन को केंद्र में रखकर मोर्चा संभाल रहे हैं.