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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची में विवाद, तेजस्वी यादव का नाम गायब

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची में तेजस्वी यादव का नाम गायब होने का विवाद उठ खड़ा हुआ है। यादव ने आरोप लगाया है कि उनके नाम के बिना चुनाव लड़ना मुश्किल हो सकता है। चुनाव आयोग ने उनके दावे को खारिज किया है, लेकिन इस मामले ने चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आयोग के अनुसार, राज्य से 65 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं, जिससे चुनावी निष्पक्षता पर असर पड़ सकता है। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी।
 

मतदाता सूची में नाम गायब होने का मामला

बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची को लेकर उठे विवाद ने चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। राष्ट्रीय जनता दल के युवा नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत जारी मतदाता सूची में उनका नाम गायब है। यह स्थिति न केवल उनके चुनाव लड़ने के अधिकार को प्रभावित कर सकती है, बल्कि मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाती है।


तेजस्वी यादव ने मीडिया के सामने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि जब उन्होंने अपना ईपीआईसी नंबर खोजने की कोशिश की, तो सिस्टम में कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। उनका कहना है कि मतदाता सूची से उनका नाम हटना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए चिंताजनक है और इससे उनकी नागरिकता तथा चुनावी भागीदारी पर भी प्रश्न उठते हैं।


हालांकि, चुनाव आयोग ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि उनका नाम सूची में है और उनका वास्तविक ईपीआईसी नंबर 2020 से सक्रिय है। आयोग के सूत्रों के अनुसार, तेजस्वी यादव के नाम से जुड़े दो अलग-अलग ईपीआईसी नंबरों में से एक वैध है, जबकि दूसरा संदिग्ध है और इसकी जांच चल रही है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि संभवतः दूसरा ईपीआईसी कभी वैध रूप से जारी नहीं किया गया।


इस विवाद के बीच, बिहार की मतदाता सूची में बड़े बदलाव भी देखने को मिले हैं। आयोग द्वारा जारी मसौदा डेटा के अनुसार, राज्य से 65 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं। अब राज्य में लगभग 7.24 करोड़ मतदाता सूचीबद्ध हैं, जबकि पहले यह संख्या 7.89 करोड़ थी।


इस भारी संख्या में नामों के हटने से मतदाता प्रभावित हो सकते हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर असर पड़ सकता है। खासकर पटना, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर और मधुबनी जैसे क्षेत्रों में जहां मतदाताओं की संख्या अधिक है। वहीं, कुछ जिलों में मतदाता संख्या अपेक्षाकृत कम बनी हुई है, जैसे शिवहर और अरवल।