भाजपा की चुनौतियाँ: वंशवादी और प्रादेशिक पार्टियों से मुकाबला
भाजपा की राजनीतिक चुनौतियाँ
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को न केवल वंशवादी दलों से मुकाबला करने में कठिनाई होती है, बल्कि क्षेत्रीय पार्टियों से भी उसे चुनौती मिलती है। भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन पार्टियों की आलोचना करें और उन्हें लोकतंत्र के लिए खतरा बताएं, लेकिन भाजपा उनके खिलाफ उसी तरह से नहीं लड़ पाती जैसे कांग्रेस के खिलाफ। कई वंशवादी और क्षेत्रीय दलों ने भाजपा को विभिन्न राज्यों में हराया है, या भाजपा ने उन्हें हराने के लिए किसी अन्य वंशवादी या क्षेत्रीय पार्टी का सहारा लिया है। यह एक प्रकार की विडंबना है कि बिहार में लालू प्रसाद की पार्टी राजद की आलोचना करते हुए भाजपा रामविलास पासवान के बेटे के साथ गठबंधन करती है। यह सच है कि अकेले भाजपा या नरेंद्र मोदी और अमित शाह बिहार की वंशवादी और क्षेत्रीय पार्टियों को पराजित नहीं कर पाते। उन्हें डीएमके से मुकाबला करने के लिए अन्नाद्रमुक की आवश्यकता होती है। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजित पवार की मदद की जरूरत होती है, और आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू का सहारा लेना पड़ता है। पंजाब में प्रकाश सिंह बादल के परिवार की मदद की आवश्यकता होती है, और झारखंड में सुदेश महतो की आजसू पार्टी की भी। पश्चिम बंगाल में भाजपा ममता बनर्जी को हराने में असफल रही है, और केरल में तो विधानसभा में उसका खाता भी नहीं खुला था, केवल लोकसभा में एक सीट मिली है।
क्षेत्रीय पार्टियों की रणनीति
भाजपा को क्षेत्रीय पार्टियों से मुकाबले में कठिनाई इसलिए होती है क्योंकि ये पार्टियाँ केवल निष्ठा या स्वामीभक्ति के आधार पर नेताओं का चुनाव नहीं करतीं। नीतीश कुमार की राजनीति इस बात को स्पष्ट करती है। नीतीश बिहार में केवल ढाई प्रतिशत आबादी वाली जाति के नेता हैं, फिर भी उन्होंने कभी भी बड़े नेताओं से डर नहीं रखा। उन्होंने जॉर्ज फर्नांडीज और शरद यादव जैसे दिग्गजों के बीच अपनी जगह बनाई और अंत तक उन्हें राज्यसभा भेजते रहे। बिहार के सबसे बड़े नेताओं में से एक जगन्नाथ मिश्र को अपनी पार्टी में शामिल किया और उन्हें सम्मान दिया। उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज रामाश्रय सिंह को भी अपनी पार्टी में रखा और उन्हें मंत्री बनाया। नीतीश ने निजी निष्ठा के बजाय वैचारिक निष्ठा या योग्यता के आधार पर नेताओं को राज्यसभा भेजा।
ममता बनर्जी का नेतृत्व
ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को अपने साथ रखा है। वे लगातार तीन बार चुनाव जीत चुकी हैं और हर बार उनके विधायकों की संख्या बढ़ती गई है। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्होंने ताकतवर होने के बाद पार्टी के बड़े नेताओं को हटा दिया हो। भाजपा के मौजूदा नेतृत्व ने ऐसा किया है। ममता ने मजबूत नेताओं को आगे बढ़ाया, जिससे भाजपा को उनसे उधार लेकर अपने नेता बनाने पड़े। पश्चिम बंगाल में भाजपा के सबसे बड़े नेता सुवेंदु अधिकारी तृणमूल कांग्रेस से आए हैं। हेमंत सोरेन, जो अपेक्षाकृत युवा नेता हैं, ने जब नेतृत्व संभाला तो कहा गया कि पुराने नेता नाराज हैं। लेकिन बाद में सभी हेमंत के साथ आए। झारखंड की राजनीति के दिग्गज नेता हेमंत के नेतृत्व में काम कर रहे हैं और उन्हें उनसे कोई आशंका नहीं होती।