भारत की एयरलाइंस: क्या इंडिगो भी बच पाएगी इस संकट से?
भारत का एविएशन बाजार: एक चुनौतीपूर्ण सफर
नई दिल्ली: भारत का एविएशन क्षेत्र विश्व के सबसे तेजी से विकसित होते बाजारों में से एक है, फिर भी यहां एयरलाइंस कंपनियों के लिए टिक पाना एक बड़ी चुनौती बन गया है। इंडिगो, जो एक मजबूत और स्थिर एयरलाइन मानी जाती है, आज नए नियमों और बढ़ती लागत के दबाव में है। 1991 के उदारीकरण के बाद से, दो दर्जन से अधिक एयरलाइंस बंद हो चुकी हैं, जिससे भारत को एयरलाइंस के लिए सबसे बड़ी 'एयरलाइन कब्रगाह' कहा जाने लगा है।
उदारीकरण के बाद की चुनौतियाँ
1991 से पहले, सरकारी एयरलाइंस का वर्चस्व था। लेकिन उदारीकरण के बाद, प्राइवेट कंपनियों की बाढ़ आ गई। ईस्ट-वेस्ट, जेट, दमानिया, मोदीलुफ्त और एनईपीसी जैसी कंपनियों ने तेज शुरुआत की, लेकिन अधिकांश ने दशक खत्म होने से पहले ही दम तोड़ दिया। इसका मुख्य कारण कम किराया, अधिक प्रतिस्पर्धा, लीज पर विमान और डॉलर में बढ़ते खर्च थे।
गिरावट का सिलसिला
ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस सबसे पहले गिरी, जब बैंक ने फंडिंग रोक दी। दमानिया एयरलाइंस प्रीमियम सेवाओं के बावजूद लागत नहीं निकाल सकी। सहारा एयरलाइंस ने कम किराए पर शुरुआत की, लेकिन एशियाई आर्थिक संकट ने कीमतें दोगुनी कर दीं। मोदीलुफ्त में प्रमोटरों के झगड़े ने कंपनी को समाप्त कर दिया। इन सभी कंपनियों की विफलता का एक ही कारण रहा: पूंजी की कमी, अधिक खर्च, लीज पर निर्भरता और किराए का खतरनाक खेल।
लो-कॉस्ट मॉडल की विफलता
2003 में एयर डेक्कन ने नई उम्मीद जगाई, लेकिन किंगफिशर द्वारा अधिग्रहण के बाद यह भी बंद हो गई। स्पाइसजेट और इंडिगो ने इस दौर में प्रवेश किया, लेकिन एयर कोस्टा, पैरामाउंट और पेगासस जैसी क्षेत्रीय एयरलाइंस भी कुछ वर्षों में गायब हो गईं। 2019 में जेट एयरवेज और 2023 में गोफर्स्ट ने भी अपनी गतिविधियाँ समाप्त कर दीं।
संरचनात्मक चुनौतियाँ
भारत में जेट फ्यूल की कीमत एयरलाइंस के खर्च का 45% तक खा जाती है, जो अन्य देशों में नहीं होता। किराया प्रतियोगिता इतनी तीव्र है कि कंपनियाँ मुनाफा छोड़कर 'बचने' के लिए उड़ान भरती हैं। अधिकांश खर्च फ्यूल, लीज और मेंटेनेंस डॉलर में होता है। रुपये की गिरावट से पूरा बिजनेस मॉडल प्रभावित होता है और लीज कंपनियाँ विमान वापस ले जाती हैं।
कौन हैं अभी भी टिके?
इंडिगो आज भी सबसे मजबूत खिलाड़ी है। इसके नो-फ्रिल्स मॉडल, एक ही प्रकार के विमान और कम कर्ज की रणनीति ने इसे बचाए रखा है। लेकिन नए FDTL नियम, बढ़ती लागत और प्रतिस्पर्धा इसकी स्थिरता को चुनौती दे रहे हैं। एयर इंडिया टाटा के हाथों में पुनर्जीवित होने की कोशिश कर रही है, स्पाइसजेट संघर्ष कर रही है और अकासा नई उम्मीद लेकर आई है।