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भारत की विदेश नीति: एक नई दिशा की ओर

भारत की विदेश नीति ने दशकों तक विदेशी विचारधारा के प्रभाव में रहकर कई बार अपने हितों को नजरअंदाज किया। हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने 2008 के मुंबई हमले के संदर्भ में अमेरिकी दबाव के चलते पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई न करने की बात स्वीकार की। इस लेख में हम भारत की विदेश नीति के इतिहास, प्रमुख घटनाओं और वर्तमान दिशा पर चर्चा करेंगे। जानें कैसे भारत अब किसी भी दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है।
 

भारत की विदेश नीति का इतिहास

स्वतंत्र भारत की विदेश नीति दशकों तक विदेशी विचारधारा के प्रभाव में रही है। इस कारण भारत को कई बार उन देशों के सामने झुकना पड़ा, जो भारतीय हितों के खिलाफ खड़े थे। लंबे समय तक भारत ने फिलिस्तीन और इस्लामी देशों का समर्थन किया, जबकि कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दिया। पिछले 11 वर्षों में भारतीय नेतृत्व ने इस पराजित मानसिकता से बाहर निकलने का प्रयास किया है।


पी. चिदंबरम का खुलासा

पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण खुलासा किया। 2008 में मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के दौरान, तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अमेरिकी दबाव के चलते पाकिस्तान के खिलाफ कोई सैन्य कार्रवाई नहीं की। चिदंबरम ने कहा, "उस समय मैंने प्रधानमंत्री और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से चर्चा की थी, लेकिन विदेश मंत्रालय के दबाव के कारण हमें कूटनीतिक तरीके अपनाने को कहा गया।"


अतीत की घटनाएं

यह मानसिकता नई नहीं है। 1995 में अमेरिकी-यूरोपीय प्रतिबंधों के दबाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने पोखरण परमाणु परीक्षण को रोक दिया था। लेकिन 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी ने इन धमकियों को नजरअंदाज करते हुए परीक्षण किया। चिदंबरम ने 1998 में लोकसभा में कहा था कि भारत को परमाणु हथियारों के खिलाफ होना चाहिए।


भारत-चीन संबंध

1962 में भारत को चीन के हाथों शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा, जिसका कारण नेहरूजी की गलतफहमियां थीं। पंचशील समझौता और सुरक्षा परिषद की सदस्यता देने के निर्णय ने भारत को नुकसान पहुंचाया। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी को लिखे पत्रों में नेहरू ने भारत की सुरक्षा के लिए अमेरिकी मदद मांगी थी।


युद्ध और संधियाँ

1965 के युद्ध में जब भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई थी, तब ताशकंद समझौते के तहत हमने जो हासिल किया था, उसे वापस कर दिया। 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को पराजित किया, लेकिन शिमला संधि के तहत कश्मीर के मुद्दे पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।


कश्मीर का इतिहास

1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया था। जब भारतीय सेना ने कश्मीर को अपने नियंत्रण में लेना शुरू किया, तब नेहरू ने युद्धविराम की घोषणा कर दी। यदि ये गलतियाँ न हुई होतीं, तो कश्मीर की स्थिति आज कुछ और होती।


नई दिशा की ओर

वास्तव में, भारत की विदेश नीति ने विदेशी विचारधारा के प्रभाव से बाहर निकलने का प्रयास किया है। पिछले 11 वर्षों में भारतीय सेना ने कई सफल ऑपरेशन किए हैं, जैसे सर्जिकल स्ट्राइक और सिंधु समझौते का स्थगन। यह दर्शाता है कि भारत अब किसी भी दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है।