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भारत की सैन्य रणनीति में बड़ा बदलाव: ऑपरेशन सिंदूर ने दी नई दिशा

भारत की सैन्य रणनीति में ऑपरेशन सिंदूर के बाद एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है, जिसमें आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की नई दिशा दिखाई दे रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब केवल चेतावनियों पर निर्भर नहीं है, बल्कि पहले कार्रवाई करने की नीति अपना चुका है। यह बदलाव न केवल सैन्य स्तर पर, बल्कि कूटनीति में भी स्पष्ट है। जानें कैसे भारत ने अपनी सुरक्षा नीति में स्थायी बदलाव किया है और यह पाकिस्तान और चीन के साथ दो मोर्चों पर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है।
 

नई दिल्ली में सैन्य डॉक्ट्रिन में परिवर्तन


नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की सैन्य रणनीति में एक महत्वपूर्ण और स्पष्ट परिवर्तन देखा गया है। पहले आतंकवाद से संबंधित मामलों में भारत संयम बरतने की नीति अपनाता था, लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि भारत ने इस नीति को पीछे छोड़ दिया है। अमेरिकी सैन्य विश्लेषकों जॉन स्पेंसर और लॉरेन डेगन एमॉस के अनुसार, 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में एयर स्ट्राइक ने इस बदलाव की दिशा को स्पष्ट किया था। 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर ने यह साबित कर दिया कि भारत की रणनीतिक डॉक्ट्रिन में बदलाव आ चुका है।


विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत पहले आतंकवाद के खिलाफ सीमित और छोटे स्तर की कार्रवाई करता था। इससे आतंकवादी समूहों को यह विश्वास हो गया था कि भारत सीमा पार बड़े पैमाने पर कार्रवाई नहीं करेगा। परिणामस्वरूप, आतंकवाद और अधिक संगठित और खतरनाक हो गया। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर की योजना और उसके परिणामों ने यह दिखा दिया कि भारत ने सैद्धांतिक सीमाओं को पार कर लिया है।


ऑपरेशन सिंदूर का महत्व

अमेरिकी विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अब केवल चेतावनियों पर निर्भर नहीं है और न ही अंतरराष्ट्रीय समर्थन की प्रतीक्षा करता है। अब भारत अपनी सुरक्षा के मामलों में 'पहले कार्रवाई' करने का अधिकार अपने पास रखता है। उनका कहना है कि भारत अब जोखिम टालने वाली नीति नहीं, बल्कि दबाव बनाने वाली और ठोस प्रतिक्रिया वाली नीति अपना चुका है। ऑपरेशन सिंदूर इस बदलाव की पुष्टि करता है।


युद्ध जैसी स्थिति की पहचान

ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी बड़े आतंकी हमले को अब केवल कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं माना जाएगा, बल्कि इसे सीधे युद्ध जैसी स्थिति के रूप में देखा जाएगा। इस ऑपरेशन में लंबी दूरी की मिसाइल क्षमता, ड्रोन स्वॉर्म, लूटिरिंग म्यूनिशन और रियल-टाइम इंटेलिजेंस का उपयोग किया गया। यह सब दर्शाता है कि भारत अब केवल प्रतिशोध नहीं, बल्कि पूर्व-निर्धारित योजना के तहत निर्णायक कार्रवाई करने का मॉडल अपना रहा है। यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में एक स्थायी और संस्थागत बदलाव है।


सीमित प्रतिक्रिया की कमजोरी

विशेषज्ञों ने बताया कि रणनीतिक संयम की नीति पाकिस्तान के साथ तनाव को नियंत्रित करने के लिए अपनाई गई थी, लेकिन समय के साथ इसका उल्टा असर हुआ। पाकिस्तान की एजेंसियों द्वारा समर्थित आतंकी समूहों ने भारत की सीमित प्रतिक्रिया को कमजोरी समझ लिया और हमलों को बढ़ा दिया। सीमित जवाबी कार्रवाई का एक पैटर्न बन गया था, जिससे आतंकियों के लिए अनुमान लगाना आसान हो गया। अब भारत की रणनीति घटना-आधारित नहीं, बल्कि पैटर्न-आधारित हो चुकी है। इसका मतलब है कि भारत की नीतियां अब केवल एक हमले के जवाब पर निर्भर नहीं रहेंगी, बल्कि सुरक्षा और प्रतिरोध के एक लंबे ढांचे के तहत चलेंगी।


भारत की दो मोर्चों पर तैयारी

यह बदलाव केवल सैन्य स्तर पर नहीं, बल्कि कूटनीति में भी स्पष्ट है। 2025 के सीजफायर पर बातचीत के दौरान भारत ने किसी भी बाहरी मध्यस्थ को शामिल करने से साफ इनकार कर दिया। दिल्ली ने पाकिस्तान के साथ संवाद को एक 'आंतरिक क्षेत्रीय मामला' मानते हुए सीधे डीजीएमओ (DGMO) स्तर की बातचीत को प्राथमिकता दी। इससे यह संदेश गया कि भारत अब नीति निर्धारण में बाहरी हस्तक्षेप के लिए जगह नहीं छोड़ना चाहता। अंत में, विशेषज्ञों ने यह भी लिखा कि पाकिस्तान के चीनी एयर डिफेंस सिस्टम और मिसाइल तकनीक भारत को रोकने में असफल रही। यह चीन के लिए भी एक संकेत है कि भारत अब दो मोर्चों, चीन और पाकिस्तान, की एक साथ चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है।