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भारत में चुनाव प्रक्रिया पर अविश्वास: निर्वाचन आयोग की भूमिका पर सवाल

भारत में चुनाव प्रक्रिया के प्रति बढ़ते अविश्वास ने निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण के बाद, विपक्ष ने अपनी चिंताओं को व्यक्त किया है। क्या निर्वाचन आयोग सभी का विश्वास हासिल कर पाएगा? जानें इस मुद्दे पर विस्तृत जानकारी और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं।
 

निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता पर उठते सवाल

यहां मुद्दा यह नहीं है कि एसआईआर की आवश्यकता है या नहीं, या इसे सही तरीके से लागू किया जा रहा है या नहीं। असली सवाल यह है कि क्या इसमें सभी का विश्वास है? निर्वाचन आयोग ने इस विश्वास को स्थापित करने में अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से नहीं निभाया है।


बिहार में मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पूरा होने के बाद, निर्वाचन आयोग ने पूरे देश में इस प्रक्रिया को लागू करने की घोषणा की है। इस दौरान, उसने विपक्ष के विरोध को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है। आयोग का तर्क यह है कि मृत व्यक्तियों, या जिनके नाम दो स्थानों पर हैं, या जो भारत के नागरिक नहीं हैं, उन्हें सूची से हटाना उसकी जिम्मेदारी है। खबरों के अनुसार, बिहार में इन श्रेणियों में लगभग 66 लाख नाम पाए गए हैं, जिन्हें अब सूची से बाहर किया जाएगा। लेकिन यह असली मुद्दा नहीं है।


वास्तविक मुद्दा यह है कि भारतीय जनसंख्या के एक बड़े हिस्से में चुनाव प्रक्रिया के प्रति बढ़ता अविश्वास है। यह स्थिति इस हद तक पहुंच गई है कि राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव बहिष्कार की संभावना व्यक्त की है। वहीं, "चुनाव की चोरी" और "धोखाधड़ी" जैसे शब्द अब मुख्यधारा की चर्चा का हिस्सा बन गए हैं। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस पर निर्वाचन आयोग को चेतावनी देने तक की बात की है। यह सब लोकतंत्र के लिए चिंताजनक संकेत हैं। यह अविश्वास की बढ़ती खाई और तनावपूर्ण माहौल को दर्शाता है। इसलिए, यह सिर्फ एसआईआर की आवश्यकता या उसके सही तरीके से कार्यान्वयन का मुद्दा नहीं है।


असल सवाल यह है कि क्या इसमें सभी का विश्वास है? यदि निर्वाचन आयोग ईमानदारी से आत्म-निरीक्षण करे, तो उसे यह समझ में आएगा कि उसने विश्वास बनाए रखने की जिम्मेदारी को सही तरीके से नहीं निभाया है। उसने विपक्ष से संवाद किए बिना और उसका विश्वास हासिल किए बिना यह प्रक्रिया शुरू कर दी। चूंकि इसके आचरण के प्रति पहले से ही विरोध की भावना गहराई है, इसलिए इस मामले में एकतरफा दृष्टिकोण ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। चुनाव आयुक्तों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि लोकतंत्र में सत्ता पक्ष, विपक्ष, सिविल सोसायटी और हर मतदाता समान हितधारक हैं। इनमें से किसी को भी नजरअंदाज करना लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी है।