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भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी को मिली मंजूरी

भारत की लोकसभा ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों को भागीदारी की अनुमति देने वाले विधेयक को मंजूरी दी है। इस विधेयक को सरकार ने ऐतिहासिक करार दिया है, जबकि विपक्ष ने इसके कई पहलुओं पर चिंता जताई है। मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह विधेयक भारत को 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करेगा। इसके लागू होने से नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ने की संभावना है, जिससे रोजगार और तकनीकी विकास को बढ़ावा मिलेगा। जानें इस विधेयक के प्रभाव और सुरक्षा संबंधी चिंताओं के बारे में।
 

नई दिल्ली में ऐतिहासिक विधेयक पारित


नई दिल्ली: लोकसभा ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों को शामिल करने वाले विधेयक को स्वीकृति दे दी है। यह विधेयक विपक्ष के विरोध के बावजूद पारित हुआ है। सरकार ने इसे 'भारत के रुपांतरण के लिए नाभिकीय ऊर्जा का संधारणीय दोहन और अभिवर्द्धन (शांति) विधेयक, 2025' का नाम दिया है, जिसे ऐतिहासिक माना जा रहा है।


विपक्ष की चिंताएं

विपक्ष का कहना है कि इस विधेयक में आपूर्तिकर्ताओं की जिम्मेदारी को स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है, और यह संवेदनशील क्षेत्र में निजी कॉर्पोरेट समूहों के लिए दरवाजे खोलने वाला है।


मंत्री जितेंद्र सिंह का बयान

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि इस विधेयक के लागू होने से 63 साल पुराना सरकारी एकाधिकार समाप्त होगा और निजी कंपनियों को परमाणु ऊर्जा उत्पादन में भाग लेने का अवसर मिलेगा। उन्होंने यह भी बताया कि यह कानून भारत को 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य तक पहुंचाने में सहायक होगा।


बिल के प्रभाव और चिंताएं

शांति बिल के पारित होने से भारत के नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र में निजी निवेश में वृद्धि हो सकती है। सरकार ने सुरक्षा, लागत, रोजगार और विकिरण से संबंधित मिथकों को स्पष्ट किया है। इस विधेयक का उद्देश्य भारत के नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र में सुधार लाना है।


यह विधेयक निजी कंपनियों को निवेश और तकनीक लाने की अनुमति देता है, लेकिन सुरक्षा और नियंत्रण पूरी तरह से सरकार के हाथ में रहेगा। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह विधेयक न केवल बिजली की लागत को स्थिर करेगा, बल्कि रोजगार, तकनीकी विकास और पर्यावरण के हित में भी महत्वपूर्ण कदम है।


सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं

कई लोगों का मानना था कि निजी कंपनियां सुरक्षा में ढील देंगी, लेकिन सरकार ने स्पष्ट किया है कि बिना लाइसेंस, सुरक्षा मंजूरी और बीमा के किसी भी नाभिकीय संयंत्र का संचालन संभव नहीं है। नियमों का उल्लंघन होने पर संयंत्र को बंद या सरकारी नियंत्रण में लिया जा सकता है। सुरक्षा किसी भी स्थिति में समझौते योग्य नहीं है।


क्या यह निजीकरण है?

शांति बिल का मतलब यह नहीं है कि नाभिकीय ऊर्जा का निजीकरण हो रहा है। ईंधन, अपशिष्ट और सुरक्षा उपाय पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में रहेंगे। निजी कंपनियां संयंत्र बना सकती हैं और चला सकती हैं, लेकिन नियंत्रण सरकार के पास रहेगा।


सस्ती और स्थिर बिजली

कुछ लोगों को डर था कि बिजली महंगी हो जाएगी, लेकिन नाभिकीय ऊर्जा लगातार 24x7 चलती है, जिससे ईंधन की लागत स्थिर रहती है और संयंत्र 60-80 साल तक चलते हैं। यह लंबे समय में बिजली की लागत को स्थिर और किफायती बनाता है।


युवाओं के लिए रोजगार के अवसर

शांति बिल उच्च तकनीकी नौकरियों के लिए अवसर प्रदान करता है, जिसमें इंजीनियरिंग, तकनीक, सुरक्षा, AI, शोध, निर्माण और निर्माण रोजगार शामिल हैं। नाभिकीय तकनीक केवल बिजली तक सीमित नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य, कृषि, स्वच्छ जल और खाद्य सुरक्षा में भी योगदान देती है।


ऊर्जा क्षेत्र में नई दिशा

इस विधेयक के लागू होने से भारत के स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन और ऊर्जा सुरक्षा में महत्वपूर्ण बदलाव आने की संभावना है। निजी क्षेत्र की भागीदारी से उत्पादन क्षमता बढ़ेगी और देश को 2047 तक निर्धारित लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद मिलेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम देश के ऊर्जा क्षेत्र में एक नई दिशा देगा और लंबे समय तक स्थायी विकास को सुनिश्चित करेगा.