भारत में प्राकृतिक आपदाओं का प्रबंधन: चुनौतियाँ और समाधान
आपदा प्रबंधन की आवश्यकता
आपदा प्रबंधन के लिए एक प्रभावी ढांचे का निर्माण आवश्यक है। इसमें राहत और बचाव की तैयारी के साथ-साथ प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को भी मजबूत करना शामिल होना चाहिए, जैसे कि बादल फटने की निगरानी। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग भूस्खलन और जलभराव की संभावित जगहों की पहचान के लिए किया जाना चाहिए।
भारत की प्राकृतिक आपदाएँ
भारत अपनी प्राकृतिक सुंदरता और विविध भौगोलिक संरचना के लिए जाना जाता है। लेकिन हर साल मानसून के दौरान यह प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता है। हाल के वर्षों में, विशेषकर हिमालयी राज्यों जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में बादल फटने, भूस्खलन और भारी बारिश के कारण हुई तबाही ने जन-धन की हानि के साथ-साथ सरकारी तंत्र की विफलता को भी उजागर किया है।
मानसून का प्रभाव
भारत में मानसून का मौसम जून से सितंबर तक रहता है, और इस दौरान भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएँ आम हो गई हैं। हाल ही में उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में बादल फटने से भारी तबाही हुई, जिसमें कई लोग लापता हो गए। इसी तरह, हिमाचल प्रदेश में भी भारी बारिश के कारण कई सड़कें बंद हो गईं और जनहानि हुई। इन घटनाओं ने यह सवाल उठाया है कि सरकारी तंत्र इन आपदाओं को रोकने में क्यों असफल है।
बादल फटने की घटनाएँ
बादल फटने की घटनाएँ, जिन्हें भारत मौसम विज्ञान विभाग 100 मिमी प्रति घंटे से अधिक बारिश के रूप में परिभाषित करता है, विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्रों में आम हैं। ये घटनाएँ जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण और भी गंभीर हो गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश की तीव्रता बढ़ रही है, जिससे बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएँ अधिक बार और विनाशकारी हो रही हैं।
सरकारी तंत्र की विफलता
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में कहा कि पहाड़ी राज्यों में निर्माण के लिए दोषी लोग हैं जो बिना ज़मीनी हकीकत जाने डीपीआर तैयार करते हैं। यह बयान सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है और विकास परियोजनाओं में पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है।
भ्रष्टाचार और लापरवाही
डीपीआर, जो किसी योजना का आधार होती है, में अगर भ्रष्टाचार और लापरवाही होती है, तो इसका परिणाम त्रासदियों के रूप में सामने आता है। पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण करते समय भूगर्भीय और पर्यावरणीय कारकों को नजरअंदाज करना आम हो गया है। गडकरी का बयान इस ओर इशारा करता है कि कई परियोजनाओं के लिए डीपीआर बिना स्थानीय भूगोल की गहन जांच के तैयार की जाती हैं।
आपदा प्रबंधन में सुधार की आवश्यकता
भारत में बाढ़ और जलभराव की स्थिति को नियंत्रित करने में सरकारी तंत्र की विफलता कई स्तरों पर स्पष्ट है। आपदा प्रबंधन की तैयारी अपर्याप्त है, और जल निकासी प्रणालियों की कमी भी एक बड़ा मुद्दा है। इसके अलावा, स्थानीय समुदायों की भागीदारी की कमी भी एक समस्या है।
समाधान के उपाय
इन समस्याओं का समाधान तभी संभव है जब सरकार और समाज मिलकर एक समग्र दृष्टिकोण अपनाएं। डीपीआर तैयार करने की प्रक्रिया को पारदर्शी और वैज्ञानिक बनाना होगा। इसके साथ ही, आपदा प्रबंधन के लिए एक मजबूत ढांचा तैयार करना होगा, जिसमें प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को भी मजबूत करना शामिल है।
पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता
इसके अलावा, पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ विकास को प्राथमिकता देनी होगी। जंगलों की कटाई को रोकना, नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बहाल करना और अंधाधुंध निर्माण पर रोक लगाना जरूरी है।
निष्कर्ष
भारत में बादल फटने, भूस्खलन और बाढ़ की त्रासदियाँ केवल प्राकृतिक नहीं हैं, बल्कि मानवीय लापरवाही और भ्रष्टाचार का भी परिणाम हैं। अब समय है कि सरकार, समाज और विशेषज्ञ मिलकर एक ऐसी व्यवस्था बनाएं जो आपदाओं को रोकने और उनके प्रभाव को कम करने में सक्षम हो।