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भारत में मीडिया की भूमिका और विश्व बैंक की रिपोर्ट पर विचार

इस लेख में चर्चा की गई है कि कैसे भारतीय मीडिया ने विश्व बैंक की रिपोर्ट में शामिल चेतावनियों को नजरअंदाज किया। रिपोर्ट में भारत की आय विषमता और सामाजिक समानता के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। जानें कि मीडिया की भूमिका और जिम्मेदारियों पर क्या प्रभाव पड़ा है और कैसे यह देश में वास्तविकता के विपरीत नैरेटिव का निर्माण कर रहा है।
 

मीडिया की जिम्मेदारी और विश्व बैंक की चेतावनी

विश्व बैंक ने भारत के आंकड़ों के संदर्भ में महत्वपूर्ण चेतावनी अपनी रिपोर्ट में शामिल की है, लेकिन इसे भारतीय प्रेस सूचना कार्यालय (पीआईबी) ने नजरअंदाज कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, मीडिया ने भी इस मुद्दे की गहराई में जाने का प्रयास नहीं किया।


भारतीय संविधान में मीडिया की स्वतंत्रता के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं है, और इसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ नहीं माना गया है। फिर भी, मीडिया को जो प्रतिष्ठा मिली है, वह उससे जुड़ी अपेक्षाओं के कारण है। मीडिया का मुख्य कार्य सूचना प्रदान करना है, लेकिन इसके साथ ही यह अपेक्षित है कि वह जानकारी को समग्रता में प्रस्तुत करे और सही संदर्भ भी दे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज का मुख्यधारा मीडिया इस मामले में निराशाजनक प्रदर्शन कर रहा है। हाल ही में, विश्व बैंक की गरीबी और विषमता पर आधारित संक्षिप्त रिपोर्ट इसका एक उदाहरण है।


भारत सरकार के प्रेस सूचना कार्यालय (पीआईबी) ने इस रिपोर्ट से सत्ता पक्ष के लिए अनुकूल आंकड़े छांटकर प्रेस विज्ञप्ति जारी की। अधिकांश मुख्यधारा मीडिया ने इस सूचना का पूरा संदर्भ समझने का प्रयास नहीं किया। नतीजतन, यह खबर व्यापक रूप से फैली कि भारत दुनिया में समानता के मामले में चौथे स्थान पर है। जबकि विश्व बैंक की रिपोर्ट से ऐसा कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता। रिपोर्ट में एक महत्वपूर्ण पैराग्राफ है: “भारत में उपभोग आधारित जिनी इंडेक्स 2011-12 के 28.8 से सुधरकर 2022-23 में 25.5 हो गया। लेकिन डेटा की सीमाओं के कारण, गैर-बराबरी की स्थिति वास्तविकता की तुलना में कम दिख सकती है।”


इसके विपरीत, वर्ल्ड इनइक्वालिटी डेटाबेस से पता चलता है कि आय विषमता का जिनी 2004 में 52 से बढ़कर 2023 में 62 हो गया है। वेतन विषमता की दर भी ऊंची बनी हुई है, जहां शीर्ष 10 प्रतिशत की औसत आय सबसे निचले 10 प्रतिशत की तुलना में 13 गुना अधिक है। विश्व बैंक और अन्य आधिकारिक एजेंसियां रिपोर्ट तैयार करते समय सरकारी आंकड़ों का उपयोग करती हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि विश्व बैंक ने भारत के आंकड़ों के संबंध में उचित चेतावनी दी है, लेकिन पीआईबी ने इसे नजरअंदाज किया। मीडिया ने भी इस मुद्दे की गहराई में जाने का प्रयास नहीं किया, जिससे देश में वास्तविकता के विपरीत एक नैरेटिव का निर्माण हुआ है।