भाषा: एक बहुमूल्य खजाना
भाषा का महत्व
चंडीगढ़ समाचार: भाषा एक अनमोल खजाने के समान है, जिसमें ज्ञान का भंडार छिपा होता है। इसे समझने के लिए व्यक्ति को यह जानना आवश्यक है कि कौन सा शब्द कब और कैसे उपयोग करना है। आवेश में बोलने का अर्थ है अपने विचारों को बेतरतीब तरीके से व्यक्त करना।
एक व्यक्ति जो समय पर चुप रहता है और कम बोलता है, वही इस दुनिया में कुछ खास कर सकता है। जन्म से लेकर जीवन के अंत तक, शब्दों का महत्व बना रहता है। जीवन का पहला शिक्षक मां होती है, जो हमें बोलना सिखाती है।
जीवन की मिठास वाणी में होती है, लेकिन यह कभी-कभी कड़वाहट में बदल सकती है। मूर्ख व्यक्ति की जुबान उसके दिल से जुड़ी होती है, जबकि विद्वान की जुबान उसके दिल की गहराई से। पहले श्रेणी के लोग शब्दों की शक्ति से अनजान होते हैं। ये विचार मनीषी संत मुनि श्री विनय कुमार जी ने अणुव्रत भवन, सेक्टर-24सी में एक सभा में व्यक्त किए।
उन्होंने आगे कहा कि जीवन में कुछ नियम और कानून होते हैं, जिनका पालन करके ही मनुष्य सुखी रह सकता है। हर व्यक्ति के पास मन, वाणी और शरीर की तीन शक्तियां होती हैं। इनका सही उपयोग करना और पुनः अर्जित करना समझदारी का काम है।
व्यक्ति की पहचान उसके भाषा व्यवहार से होती है। आभूषणों से बढ़ाया गया सौंदर्य स्थायी नहीं होता, लेकिन मधुर वाणी का आकर्षण हमेशा बना रहता है। अपव्यय किसी भी दृष्टि से लाभकारी नहीं होता। अधिक सोचने से जितना नुकसान होता है, उससे कम नुकसान अधिक बोलने से होता है।
बोलने का उद्देश्य अपनी बातों को दूसरों तक पहुंचाना है, लेकिन यदि माध्यम गलत है, तो यह एक अस्वस्थ वातावरण का निर्माण कर सकता है। मनीषी संत ने अंत में कहा कि वाणी का विवेक सबसे महत्वपूर्ण है। शब्द ही झगड़े का कारण बन सकते हैं और वही उन्हें सुलझा भी सकते हैं।
जो व्यक्ति विवेकशील होता है, वह कभी कटु शब्दों का प्रयोग नहीं करता। ज्ञानी व्यक्ति कम बोलता है, क्योंकि वह मौन में बहुत कुछ समझ लेता है। मौन न केवल दुर्बलता को छिपाने का साधन है, बल्कि इसे पार करने का भी एक सफल तरीका है।
बोलने का व्यवहार निभाने का एक तरीका है, जिससे इंद्रियों को विश्राम मिलता है। अधिक बोलने से होने वाले नुकसान की तुलना में अधिक सोचने से कम नुकसान होता है। जीवन की मिठास वाणी में होती है, लेकिन इसे बिना पूछे नहीं बोलना चाहिए।