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मनसे का हिंदी अनिवार्यता के खिलाफ प्रदर्शन, मराठी भाषा की रक्षा की मांग

महाराष्ट्र में मनसे ने हिंदी को अनिवार्य करने के खिलाफ धुले में जोरदार प्रदर्शन किया। कार्यकर्ताओं ने इसे मराठी भाषा पर हमला बताया और चेतावनी दी कि यदि सरकार ने अपना निर्णय वापस नहीं लिया, तो राज्यभर में आंदोलन किया जाएगा। मनसे का कहना है कि यह कदम मराठी भाषा के अस्तित्व को खतरे में डालता है। प्रदर्शन के दौरान कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी की और सरकार को चुनौती दी कि भाषा के नाम पर कोई राजनीति नहीं चलेगी।
 

महाराष्ट्र में मनसे का विरोध

महाराष्ट्र में शिक्षा विभाग द्वारा हिंदी को अनिवार्य करने के निर्णय के खिलाफ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। मनसे कार्यकर्ताओं ने धुले में एक बड़ा प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने सरकार के इस फैसले को मराठी भाषा पर हमला बताया। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने हिंदी को अनिवार्य बनाने का निर्णय वापस नहीं लिया, तो पूरे राज्य में आंदोलन किया जाएगा।


प्रदर्शन का कारण

धुले में हुए प्रदर्शन के दौरान मनसे कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी की और सरकार को मराठी विरोधी करार दिया। दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने अप्रैल से कक्षा पहली से तीसरी तक पढ़ाई जाने वाली भाषाओं में हिंदी को अनिवार्य रूप से शामिल करने का निर्णय लिया था। हालांकि, विरोध के बाद सरकार ने इसे वैकल्पिक बताया, लेकिन मनसे इसे केवल एक कागजी खेल मानती है।


भाषा के अस्तित्व पर खतरा

प्रदर्शन के दौरान मनसे कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतरकर नारेबाजी की और पोस्टर लेकर मोर्चा खोला। मनसे के अधिवक्ता प्रसाद देशमुख ने कहा कि सरकार एक ओर कहती है कि हिंदी अनिवार्य नहीं है, जबकि दूसरी ओर बच्चों पर हिंदी थोपने की योजना बना रही है। यह मराठी भाषा के अस्तित्व पर सीधा हमला है, जिसे हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।


भाषा के नाम पर राजनीति?

मनसे का कहना है कि राज्य में मराठी भाषा पहले से ही संघर्ष कर रही है। यदि हिंदी को जबरन लागू किया गया, तो मराठी को और पीछे धकेल दिया जाएगा। प्रदर्शन के दौरान कई नेताओं ने मंच से सरकार को चुनौती दी, यह कहते हुए कि मराठी में ही महाराष्ट्र की आत्मा है। भाषा के नाम पर कोई राजनीति नहीं चलेगी।