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ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर उठाए सवाल, भाजपा के पक्ष में काम करने का आरोप

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसमें उन्होंने कहा कि आयोग भाजपा के हित में काम कर रहा है। उन्होंने विशेष गहन पुनरीक्षण में हुई गलतियों और स्थानीय भाषा ज्ञान की कमी वाले अधिकारियों की नियुक्ति पर भी सवाल उठाए। नए मतदाता सूची में 58 लाख से अधिक नाम काटे गए हैं, और अब लगभग 30 लाख मतदाताओं को नोटिस भेजे जाने की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। जानें इस मुद्दे की पूरी जानकारी और इसके पीछे के तथ्य।
 

चुनाव आयोग पर ममता का आरोप


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर भाजपा के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि राज्य में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण में कई गंभीर गलतियां हुई हैं। ममता ने यह भी बताया कि चुनाव आयोग बिना राज्य सरकार को सूचित किए ही पर्यवेक्षक नियुक्त कर रहा है।


चुनाव आयोग ने 19 दिसंबर को पश्चिम बंगाल में नए मतदाता सूची का प्रकाशन किया। इस सूची के अनुसार, कुल मतदाताओं की संख्या 7.08 करोड़ है, जबकि पहले यह संख्या 7.66 करोड़ थी। इस प्रक्रिया में 58 लाख 20 हजार से अधिक नाम हटा दिए गए हैं।


माइक्रो ऑब्जर्वर की भाषा ज्ञान पर सवाल

सोमवार को कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में बूथ स्तर के एजेंटों की बैठक में ममता ने कहा कि माइक्रो ऑब्जर्वर के रूप में नियुक्त केंद्रीय अधिकारियों को स्थानीय भाषा (बांग्ला) का ज्ञान बहुत कम है। ऐसे अधिकारी संशोधन प्रक्रिया के दौरान वेरिफिकेशन के लिए अयोग्य हैं।


नए मतदाता सूची के बाद नोटिस भेजने की प्रक्रिया

नई सूची जारी होने के बाद सुनवाई की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है। पहले चरण में लगभग 30 लाख मतदाताओं को नोटिस भेजे जा सकते हैं, जिनके एन्यूमरेशन फॉर्म में वंशावली मिलान दर्ज नहीं पाया गया है। इसके अलावा, विभिन्न जिलों के संदिग्ध श्रेणी में शामिल मतदाताओं को भी सुनवाई के लिए बुलाया जाएगा।


संदिग्ध प्रोजेनी मैपिंग की जांच

चुनाव आयोग की जांच में यह पाया गया है कि कई मामलों में मतदाताओं और उनके माता-पिता या दादा-दादी के बीच उम्र का अंतर असामान्य रूप से कम है। कुछ मामलों में एक ही व्यक्ति को कई मतदाताओं का पिता या दादा दिखाया गया है। ऐसे मामलों को संदिग्ध प्रोजेनी मैपिंग मानते हुए आयोग ने विशेष जांच शुरू की है। प्रारंभिक जांच में ऐसे मामलों की संख्या लगभग 1 करोड़ 67 लाख थी, जो बाद में घटकर 1 करोड़ 36 लाख रह गई है।