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महाराष्ट्र में कांग्रेस की राजनीतिक दुविधा: ठाकरे बंधुओं का तालमेल

महाराष्ट्र में कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति जटिल हो गई है, जब उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे के साथ बिना किसी सलाह के गठबंधन कर लिया। इस नए तालमेल से कांग्रेस की चिंताएं बढ़ गई हैं, खासकर आगामी चुनावों को लेकर। शरद पवार की भूमिका और ठाकरे बंधुओं की एकजुटता ने कांग्रेस को एक नई दुविधा में डाल दिया है। क्या कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ पाएगी? जानिए पूरी कहानी।
 

कांग्रेस की चुनौती

महाराष्ट्र में कांग्रेस के लिए स्थिति काफी जटिल हो गई है। उद्धव ठाकरे ने बिना कांग्रेस की सहमति के राज ठाकरे के साथ गठबंधन कर लिया है। दोनों भाई एकजुट होकर मराठी अस्मिता के नाम पर रैली कर रहे हैं, और उनके कार्यकर्ता अब एक साथ सड़कों पर उतर आए हैं। इस तालमेल से कांग्रेस के अन्य सहयोगी शरद पवार को कोई समस्या नहीं है, बल्कि कहा जा रहा है कि वे इस गठबंधन के पीछे के मुख्य योजनाकार हैं। उनका उद्देश्य एकनाथ शिंदे को कमजोर करना और भाजपा में उनकी स्थिति को प्रभावित करना है। यदि शिंदे कमजोर होते हैं, तो ठाकरे बंधुओं की एकजुट पार्टी भाजपा के साथ जा सकती है, जिससे महाराष्ट्र की राजनीति पुरानी स्थिति में लौट सकती है। लेकिन इससे कांग्रेस की चिंताएं बढ़ गई हैं।


कांग्रेस की दुविधा

कांग्रेस को यह समझ नहीं आ रहा है कि उसे क्या कदम उठाना चाहिए। बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और हिंदी भाषी लोगों पर हमलों के बाद कांग्रेस की स्थिति पर सवाल उठने लगे हैं। वहीं, महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव भी आने वाले हैं, जिसमें गठबंधन की स्थिति स्पष्ट नहीं है। कांग्रेस के नेता अकेले चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, क्योंकि राज ठाकरे के साथ जाना उनके लिए संभव नहीं है। भाषा और धर्म के मुद्दों पर उनकी राजनीति कांग्रेस को अन्य हिस्सों में नुकसान पहुंचा सकती है। कांग्रेस की स्थिति अब 'माया मिली न राम' जैसी हो गई है। उद्धव ठाकरे के साथ समझौता करने के बाद उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं को भरोसा दिलाया था, लेकिन अब जब उद्धव भी राज ठाकरे जैसी राजनीति करने लगे हैं, तो कांग्रेस के सामने साख का संकट खड़ा हो गया है। मुंबई में शरद पवार की पार्टी का प्रभाव कम है, इसलिए बीएमसी चुनाव कांग्रेस को अकेले ही लड़ना होगा।