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महाराष्ट्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र: विपक्ष की अनुपस्थिति पर चर्चा

महाराष्ट्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र 14 दिसंबर को समाप्त हुआ, जिसमें विपक्ष की अनुपस्थिति पर चर्चा हुई। यह पहला मौका है जब दोनों सदनों में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है। सरकार ने 10 फीसदी सीट के नियम का हवाला देकर किसी पार्टी को मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा नहीं दिया है, जबकि विधान परिषद में कांग्रेस के पास पर्याप्त संख्या है। जानिए इस मुद्दे पर और क्या कहा गया है और क्या यह राजनीतिक परंपराओं के खिलाफ है।
 

महाराष्ट्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र समाप्त

महाराष्ट्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र 14 दिसंबर को समाप्त हुआ। हर वर्ष की तरह, यह सत्र नागपुर में आयोजित किया गया। 8 से 14 दिसंबर तक विधानसभा की कार्यवाही चली। अब एक साल हो चुका है जब से महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हुए हैं, और यह पहली बार है कि दोनों सदनों में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है। महाराष्ट्र विधानसभा के दोनों सदन बिना मुख्य विपक्षी पार्टी के कार्य कर रहे हैं। हालांकि, यह कहना गलत होगा कि किसी पार्टी को मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा न देने से कार्यवाही प्रभावित हो रही है। लेकिन भारत में अपनाई गई संसदीय प्रणाली में मुख्य विपक्षी पार्टी और नेता प्रतिपक्ष का होना आवश्यक है।


मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा न मिलने का मामला

दिलचस्प बात यह है कि विधानसभा में सरकार ने 10 फीसदी सीट के एक कथित नियम का हवाला देकर किसी पार्टी को मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा नहीं दिया है। जबकि विधान परिषद में कांग्रेस के पास कुल सदस्यों की संख्या के 10 फीसदी से अधिक विधान पार्षद हैं, फिर भी उसे मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा नहीं दिया जा रहा है। महाराष्ट्र विधान परिषद में कुल 78 सदस्य हैं, जिनमें से कांग्रेस के पास 8 पार्षद हैं। इसका मतलब है कि वह 10 फीसदी से अधिक है। उद्धव ठाकरे की शिव सेना के पास 5 और शरद पवार की एनसीपी के 2 सदस्य हैं। महाविकास अघाड़ी के पास कुल 15 विधान पार्षद हैं। यदि 10 फीसदी के नियम को मानें, तो कांग्रेस के नेता को नेता विपक्ष का दर्जा मिलना चाहिए, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।


विपक्षी गठबंधन की स्थिति

विधानसभा में उद्धव ठाकरे की शिव सेना के पास 20 विधायक हैं, कांग्रेस के 16 और शरद पवार की पार्टी के 10 विधायक हैं। इस प्रकार, विपक्षी गठबंधन के पास कुल 46 विधायक हैं। सरकार का तर्क है कि किसी एक पार्टी के पास 10 फीसदी विधायक नहीं हैं, इसलिए किसी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिलेगा। हालांकि, यह 10 फीसदी संख्या का कोई कानूनी आधार नहीं है। महाराष्ट्र लेजिस्लेचर सैलेरीज एंड अलाउंसेज एक्ट 1978 में केवल इतना कहा गया है कि महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों में सबसे अधिक संख्या वाली पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष माना जाएगा।


परंपरा और उदाहरण

महाराष्ट्र में 10 फीसदी का नियम एक परंपरा के रूप में चलता है, लेकिन कानून ऐसा नहीं कहता। इसी कारण पिछले विधानसभा में कांग्रेस के विजय वड्डेटीवार नेता प्रतिपक्ष थे, जबकि इस विधानसभा में उद्धव ठाकरे की पार्टी के भास्कर जाधव ने दावा किया। विपक्षी पार्टियां याद दिला रही हैं कि 1962 में 264 के सदन में कांग्रेस के 215 विधायक थे और केवल 15 सीटों के साथ वर्कर्स एंड पीजंट्स पार्टी को मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा दिया गया था। 1967 और 1972 में भी ऐसा ही हुआ। दिल्ली में 2015 के चुनाव में भाजपा को 70 की विधानसभा में केवल 3 सीटें मिली थीं, फिर भी आम आदमी पार्टी को नेता प्रतिपक्ष का पद दिया गया था। लेकिन वर्तमान सरकार इस उदारता को किसी के प्रति नहीं दिखा रही है।