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मोदी-शाह की रणनीति: संगठन और सत्ता का अद्भुत संतुलन

इस लेख में हम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की राजनीतिक रणनीतियों पर चर्चा करेंगे, जिसमें संगठन और सत्ता के बीच संतुलन बनाए रखने की उनकी कला को समझाया गया है। जानें कैसे उन्होंने भाजपा के भीतर अपने प्रभाव को बढ़ाया और भविष्य की राजनीति को आकार दिया। क्या यह रणनीति हिंदू विचारधारा की जैविक राजनीति को प्रभावित करेगी? पढ़ें पूरी कहानी।
 

संगठन और सत्ता का संतुलन

कई लोगों ने मुझसे पूछा है कि क्या आपने अमित शाह को हंसते हुए देखा है? चूंकि मैं टीवी नहीं देखता, मैंने इसे कल्पना में सोचा और यह मान लिया कि अमित शाह का खुश रहना गलत नहीं है। मोहन भागवत और उनकी टीम ने संगठन के पुराने नियमों के अनुसार काम करने की बात की। उन्होंने कहा कि हमें अध्यक्ष के लिए तीन नाम देने होंगे। इसका मतलब था कि संगठन को पुराने तरीके से चलाना होगा। वाजपेयी, आडवाणी, गडकरी और राजनाथ सिंह के समय जो प्रक्रिया थी, उसी के अनुसार निर्णय लिया जाएगा। इस प्रक्रिया में मोदी और शाह ने जेपी नड्डा का कार्यकाल बढ़ाते हुए निर्णय को लटकाए रखा। यह स्पष्ट था कि मोहन भागवत और संघ की उच्च कमेटी का मानना था कि सरकार को चलाने का तरीका अपना है, लेकिन संगठन को अनुशासित रखना आवश्यक है।


मोदी का प्रभाव

हालांकि, जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं, तो ऐसा कैसे संभव है? मोहन भागवत और उनकी टीम ने इस बात को समझने में गलती की। जेपी नड्डा ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि भाजपा अब इतनी बड़ी हो गई है कि उसे संघ की आवश्यकता नहीं है। यह दृष्टिकोण नरेंद्र मोदी का गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए भी था। लेकिन वाजपेयी, आडवाणी, सुदर्शन और भागवत जैसे नेताओं के सामने यह सच्चाई छिपी रही कि मोदी ने सरकार के साथ-साथ संगठन को भी अपने नियंत्रण में रखा है।


भाजपा में बदलाव

2014 से 2025 तक का रिकॉर्ड मोदी का है, और इसी तरह 2000 से 2014 तक का भी। जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बने, तब गुजरात में कई बड़े नेता और जनाधार वाले चेहरे धीरे-धीरे हाशिए पर चले गए। जैसे 2014 के बाद आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और शांता कुमार। गुजरात के केशुभाई पटेल, शंकरसिंह वाघेला, एके पटेल और अन्य भाजपाई चेहरे भी इसी तरह हाशिए पर चले गए। नरेंद्र मोदी ने संघ के सुदर्शन और मोहन भागवत को भी संभाला।


भविष्य की राजनीति

इसलिए, 1947 से अब तक की दिल्ली की सत्ता में मोदी का यह कमाल है कि उन्होंने सरकार, पार्टी, संगठन और संघ को इस तरह से नियंत्रित किया है कि हिंदू विचारधारा की जैविक राजनीति का अस्तित्व ही न बचे। इसी सोच के तहत मोदी सरकार के राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और मंत्री बनाए गए हैं, जो गांधीनगर के मोदीकालीन कैबिनेट की प्रतिलिपि हैं।


आगे की रणनीति

यह ध्यान देने योग्य है कि जिस तरह से मोदी-शाह ने नितिन नबीन को भाजपा अध्यक्ष बनाया, उसी तरह अगले चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को भी निपटाया जाएगा। आखिरकार, कोई भी ऐसा क्यों रहे जो भविष्य में धुरी बने।